अप्रतिम कविताएँ
धूप का टुकड़ा
सुनो!
आज पूरे दिन मैं भागता रहा
धूप के एक टुकड़े के पीछे,
सुबह सवेरे खिड़की से झाँक रहा था
तो मैं उसे पकड़ कर बैठ गया,

मगर वह रुका नहीं वहाँ
फिर आगे बढ़ गया

मैं दूसरे कमरे में गया
कुछ देर की मोहलत दी उसने
मगर फिर निकल लिया वहाँ से
दूसरे कमरे
फिर
तीसरे कमरे
कभी घास के छोटे से हिस्से पर
कभी इस आंगन
कभी उस आंगन
आख़िर तक मैं उसका पीछा करता रहा
और वह किसी मृगतृष्णा की तरह
सुख की आस दिलाता रहा
धूप का वह नन्हा-सा टुकड़ा!
फिर इन सब के बीच कब शाम हो गई,
मैं समझ ही न पाया!
ख़ुद को समेट कर गुम हो गया धूप का टुकड़ा...
- ममता शर्मा

काव्यालय को प्राप्त: 17 Jan 2022. काव्यालय पर प्रकाशित: 21 Jan 2022

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अप्रैल 2023 – मार्च 2024
इस महीने :
'या देवी...'
उपमा ऋचा


1
सृष्टि की अतल आंखों में
फिर उतरा है शक्ति का अनंत राग
धूम्र गंध के आवक स्वप्न रचती
फिर लौट आई है देवी
रंग और ध्वनि का निरंजन नाद बनकर
लेकिन अभी टूटी नहीं है धरती की नींद
इसलिए जागेगी देवी अहोरात्र...

2
पूरब में शुरू होते ही
दिन का अनुष्ठान
जाग उठी हैं सैकड़ों देवियाँ
एक-साथ
ये देवियाँ जानती हैं कि
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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