अप्रतिम कविताएँ
चाँद के अश्क मीठे
घास का नर्म गलीचा
घर के पीछे
और मन के पीछे तुम

सितारों की तरह टिमटिम
हरी दूब पर असंख्य मोती
दरअसल अपनी ही लिपि के अक्षर हैं
यहाँ समेटने का मतलब बिखरना होता है

मन की ज़मीन पर
मुलायम दूब उग आए हैं
ख़याल के क़दम लिए
उन दूबों पर चलता हूँ

सोचता हूँ तलवों से चिपकी
बूँदों का अब क्या करूं ?
और फिर घबराकर पाँव झट से
समंदर में भिगो आता हूँ

ख़ुश हो लेता हूँ
कि समंदर को
हल्का मीठा चखा दिया

मन के अंदर भी एक समंदर है
लहरें वहाँ भी उमड़ती है
हिचकोले लेती हैं ,दिल पर पड़ती है

और फिर बाँध पसीजता है आँखों में
अब यही सोचता हूँ
चाँद के अश्क़ मीठे
और मेरे नमकीन क्यों ?
- यतीश कुमार

काव्यालय को प्राप्त: 14 Oct 2022. काव्यालय पर प्रकाशित: 9 Jun 2023

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अप्रैल 2023 – मार्च 2024
इस महीने :
'या देवी...'
उपमा ऋचा


1
सृष्टि की अतल आंखों में
फिर उतरा है शक्ति का अनंत राग
धूम्र गंध के आवक स्वप्न रचती
फिर लौट आई है देवी
रंग और ध्वनि का निरंजन नाद बनकर
लेकिन अभी टूटी नहीं है धरती की नींद
इसलिए जागेगी देवी अहोरात्र...

2
पूरब में शुरू होते ही
दिन का अनुष्ठान
जाग उठी हैं सैकड़ों देवियाँ
एक-साथ
ये देवियाँ जानती हैं कि
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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