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बूँदें
बरसती हैं बूँदें
झूमते हैं पत्ते
पत्ता-पत्ता जी रहा है
पल पल को
आने वाले कल से बेख़बर
-
कुसुम जैन
काव्यालय को प्राप्त: 26 Sep 2021. काव्यालय पर प्रकाशित: 1 Oct 2021
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'हर मकान बूढ़ा होता'
कुमार रवीन्द्र
साधो, सच है
जैसे मानुष
धीरे-धीरे हर मकान भी बूढ़ा होता
देह घरों की थक जाती है
बस जाता भीतर अँधियारा
उसके हिरदय नेह-सिंधु जो
वह भी हो जाता है खारा
घर में
जो देवा बसता है
..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'अधूरी'
प्रिया एन. अइयर
हर घर में दबी आवाज़ होती है
एक अनसुनी सी
रात में खनखती चूड़ियों की
इक सिसकी सी
..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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