अप्रतिम कविताएँ
अन्त
झर-झर बहते नेत्रों से,
कौन सा सत्य बहा होगा?
वो सत्य बना आखिर पानी,
जो कहीं नहीं कहा होगा।

झलकती सी बेचैनी को,
कितना धिक्कार मिला होगा?
बाद में सोचे है इंसान,
पहले अंधा-बहरा होगा।

तलाश करे या आस करे,
किस पर विश्वास ज़रा होगा?
कितना गहरा होगा वो दुख,
मृत्यु से जो ढका होगा।

होकर नम फिर बंद हो गईं,
आँखों ने क्या सहा होगा?
हो जिसका क्षण-क्षण मृत्यु,
ये जीवन दीर्घ लगा होगा।

जो मौन हुआ सह-सहकर मौन,
उस मौन का भेद क्या होगा?
न ज्ञात किसी को भेद वो अब,
वो भेद जो साथ गया होगा।

कुछ शेष नहीं इसके पश्चात,
पर क्या विशेष रहा होगा?
ठहराव की आकांक्षा से वो,
यूँ थक कर सोया होगा।
- दिव्या ओंकारी ’गरिमा’

काव्यालय को प्राप्त: 24 Nov 2023. काव्यालय पर प्रकाशित: 5 Apr 2024

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'या देवी...'
उपमा ऋचा


1
सृष्टि की अतल आंखों में
फिर उतरा है शक्ति का अनंत राग
धूम्र गंध के आवक स्वप्न रचती
फिर लौट आई है देवी
रंग और ध्वनि का निरंजन नाद बनकर
लेकिन अभी टूटी नहीं है धरती की नींद
इसलिए जागेगी देवी अहोरात्र...

2
पूरब में शुरू होते ही
दिन का अनुष्ठान
जाग उठी हैं सैकड़ों देवियाँ
एक-साथ
ये देवियाँ जानती हैं कि
..

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