अप्रतिम कविताएँ
अनकही सी बात
बात,
जो तुम कह नहीं पाये,
जो रह गयी थी
दो बातों के दरम्यां
अटक कर
तुम्हारे अधरों पर
जिसे छुपा लिया
तुम्हारी नजरों ने
पलकें झुका कर,
उसे पढ़ लिया था मैंने
और वह शामिल हो गया है
मेरे होने में ।
उसी को मैं लिखता हूँ आजकल,
अपनी कविताओं में।
बूँद बूँद
अपने वजूद में डूबोकर।
तुम्हारे लिए
जो थी
एक ज़रा
अनकही सी बात,
वह एक सिलसिला बन गया है
कभी नहीं खत्म होने वाला।
मेरे मन का आकाश
अभी भी ताकता है राह
और फाहे से बनाता है
तरह तरह की तस्वीरें
और फिर फूंक कर उड़ा देता है
इधर उधर
मुस्कुराते हुए।
कभी कभी बरस भी जाता है
आँखों से,
अगर कभी इधर आना
तो लेकर आना
एक नाव।
नदी जो तुम्हें दिखती है सूखी
है दरअसल लबालब भरी हुई।
जिस किनारे पर कभी तुमने लिखा था
अपना नाम,
उसे मैंने अब भी बचाकर रखा है
नदी की धारा से
अपनी देह की आड़ देकर
और तुम्हारी अँगुलियों की छुअन
महसूस करता हूँ
अपनी हथेली पर।
जब आओ तो अपने पैरों के नीचे
रख लेना
एक फूल।
- नीरज नीर
विषय:
प्रेम (62)

काव्यालय को प्राप्त: 14 Apr 2018. काव्यालय पर प्रकाशित: 7 Dec 2018

***
सहयोग दें
विज्ञापनों के विकर्षण से मुक्त, काव्य के सुकून का शान्तिदायक घर... काव्यालय ऐसा बना रहे, इसके लिए सहयोग दे।

₹ 500
₹ 250
अन्य राशि
इस महीने :
'हमारी सहयात्रा'
ज्योत्सना मिश्रा


कभी-कभी जीवन कोई घोषणा नहीं करता—
वह बस बहता है,
जैसे कोई पुराना राग,
धीरे-धीरे आत्मा में उतरता हुआ,
बिना शोर, बिना आग्रह।

हमारे साथ के तीस वर्ष पूर्ण हुए हैं।
कभी लगता है हमने समय को जिया,
कभी लगता है समय ने हमें तराशा।
यह साथ केवल वर्ष नहीं थे—
यह दो आत्माओं का मौन संवाद था,
जो शब्दों से परे,
पर भावों से भरपूर रहा।

जब हमने साथ चलना शुरू किया,
तुम थे स्वप्नद्रष्टा—
शब्दों के जादूगर,
भविष्य के रंगीन रेखाचित्रों में डूबे हुए।
और मैं…
मैं थी वह ज़मीन
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'तुम तो पहले ऐसे ना थे'
सत्या मिश्रा


तुम तो पहले ऐसे न थे
रात बिरात आओगे
देर सवेर आओगे
हम नींद में रहें
आँख ना खुले
तो रूठ जाओगे...

स्वप्न में आओगे
दिवास्वप्न दिखाओगे
हम कलम उठाएँगे
तो छिप जाओगे...

बेचैनियों का कभी
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
इस महीने :
'कुछ प्रेम कविताएँ'
प्रदीप शुक्ला


1.
प्रेम कविता, कहानियाँ और फ़िल्में
जहाँ तक ले जा सकती हैं
मैं गया हूँ उसके पार
कई बार।
इक अजीब-सी बेचैनी होती है वहाँ
जी करता है थाम लूँ कोई चीज
कोई हाथ, कोई सहारा।
मैं टिक नहीं पाता वहाँ देर तक।।

सुनो,
अबसे
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
संग्रह से कोई भी रचना | काव्य विभाग: शिलाधार युगवाणी नव-कुसुम काव्य-सेतु | प्रतिध्वनि | काव्य लेख
सम्पर्क करें | हमारा परिचय
सहयोग दें

a  MANASKRITI  website