अप्रतिम कविताएँ
आए दिन अलावों के
आए दिन
जलते हुए,अलावों के !!

सलोनी सांझ
मखमली अंधेरा
थमा हुआ शोर
हर ओर
जी उठे दृश्य
मनोरम गांवों के !!

निष्ठुर ऋत
जिद्दी ज्वालाएं
देखें मंज़र
शीत समंदर में
भावों की
तिरती हुई नावों के !!

ओढ़ दुशाला
चहका चाँद
गिनता रहा निशां
रात भर
चाँदनी के
पांवों के !!!
- इन्दिरा किसलय

काव्यालय को प्राप्त: 13 Jan 2023. काव्यालय पर प्रकाशित: 22 Nov 2024

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'पिता: वह क्यों नहीं रुके'
ब्रज श्रीवास्तव


मेरे लिए, मेरे पिता
तुम्हारे लिए, तुम्हारे पिता जैसे नहीं हैं,

एकांत की खोह में जब जाता हूँ
बिल्कुल, बिल्कुल करीब हो जाता हूँ
अपने ही
तब भी
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...


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अप्रैल 2023 – मार्च 2024
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