अप्रतिम कविताएँ
विसंगतियां
जब भी मुझे
जंजीरों का अहसास
कुछ ज्यादा हुआ है
कुछ कर गुज़रने की ललक
मुझमें बढ़ी है
सीमाएं तोड़ जाने की शक्ति
मेरे बंधे हाथों ने दी है
पैरों की बेड़ियों ने
गगनचुम्बी हौसले दिए हैं
सच कहूँ ठोकरों ने मेरी ज़िन्दगी
गतिशील ही की है
जब भी दोस्तों ने मेरे
अस्तित्व को नकारना चाहा
मुझे अपनी ही पहचान मिली है ।
- कान्ता गोगिया
Kanta Gogia
Email: [email protected]
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इस महीने :
'या देवी...'
उपमा ऋचा


1
सृष्टि की अतल आंखों में
फिर उतरा है शक्ति का अनंत राग
धूम्र गंध के आवक स्वप्न रचती
फिर लौट आई है देवी
रंग और ध्वनि का निरंजन नाद बनकर
लेकिन अभी टूटी नहीं है धरती की नींद
इसलिए जागेगी देवी अहोरात्र...

2
पूरब में शुरू होते ही
दिन का अनुष्ठान
जाग उठी हैं सैकड़ों देवियाँ
एक-साथ
ये देवियाँ जानती हैं कि
..

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