अप्रतिम कविताएँ
विसंगतियां
जब भी मुझे
जंजीरों का अहसास
कुछ ज्यादा हुआ है
कुछ कर गुज़रने की ललक
मुझमें बढ़ी है
सीमाएं तोड़ जाने की शक्ति
मेरे बंधे हाथों ने दी है
पैरों की बेड़ियों ने
गगनचुम्बी हौसले दिए हैं
सच कहूँ ठोकरों ने मेरी ज़िन्दगी
गतिशील ही की है
जब भी दोस्तों ने मेरे
अस्तित्व को नकारना चाहा
मुझे अपनी ही पहचान मिली है ।
- कान्ता गोगिया
Kanta Gogia
Email: [email protected]
Kanta Gogia
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विषय:
संकल्प (14)

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इस महीने :
'स्वतंत्रता का दीपक'
गोपालसिंह नेपाली


घोर अंधकार हो, चल रही बयार हो,
आज द्वार द्वार पर यह दिया बुझे नहीं।
यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है।

शक्ति का दिया हुआ, शक्ति को दिया हुआ,
भक्ति से दिया हुआ, यह स्वतंत्रता-दिया,
रुक रही न नाव हो, ज़ोर का बहाव हो,
आज गंगधार पर यह दिया बुझे नहीं!
यह स्वदेश का दिया प्राण के समान है!
..

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इस महीने :
'युद्ध की विभीषिका'
गजेन्द्र सिंह


युद्ध अगर अनिवार्य है सोचो समरांगण का क्या होगा?
ऐसे ही चलता रहा समर तो नई फसल का क्या होगा?

हर ओर धुएँ के बादल हैं, हर ओर आग ये फैली है।
बचपन की आँखें भयाक्रान्त, खण्डहर घर, धरती मैली है।
छाया नभ में काला पतझड़, खो गया कहाँ नीला मंजर?
झरनों का गाना था कल तक, पर आज मौत की रैली है।

किलकारी भरते ..

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इस महीने :
'नव ऊर्जा राग'
भावना सक्सैना


ना अब तलवारें, ना ढाल की बात है,
युद्ध स्मार्ट है, तकनीक की सौगात है।
ड्रोन गगन में, सिग्नल ज़मीन पर,
साइबर कमांड है अब सबसे ऊपर।

सुनो जवानों! ये डिजिटल रण है,
मस्तिष्क और मशीन का यह संगम है।
कोड हथियार है और डेटा ... ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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