अप्रतिम कविताएँ
जब पेड़ उखड़ता है
जंगल से गुजरते हुए उसने
ओक के पेड़ की पत्तियों को चूमा
जैसे अपनी माँ की हथेलियों को चूमा
कहा - यह मेरी माँ का हाथ पकड़कर बड़ा हुआ है
इसके पास आज भी उसका स्पर्श है
जंगल का हाथ पकड़कर
मेरे पुरखे भी बड़े हुए
वे नहीं हैं पर यह आज भी वहीं खड़ा है
इसने मेरे पुरखों की स्मृतियों
और स्पर्शों को बचाकर रखा है
उन्हें महसूस करने के लिए
मैं इन्हें छूता हूँ, चूमता हूँ
मैं इनसे प्यार करता हूँ

जानती हो?
एक पेड़ के उखड़ने से
वह एक बार उखड़ता है
पर उससे जुड़ा आदमी
दो बार उखड़ता है
एक बार अपनी ज़मीन से उखड़ता है
और दूसरी बार अपनों की
स्मृतियों के स्पर्श से उजड़ता है ।
- जसिन्ता केरकेट्टा
जसिन्ता केरकेट्टा की कविता संग्रह 'प्रेम में पेड़ होना' (राजकमल प्रकाशन) से

काव्यालय को प्राप्त: 26 Oct 2021. काव्यालय पर प्रकाशित: 14 Jun 2024

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इस महीने :
'काल का वार्षिक विलास'
नाथूराम शर्मा 'शंकर'


सविता के सब ओर मही माता चकराती है,
घूम-घूम दिन, रात, महीना वर्ष मनाती है,
कल्प लों अन्त न आता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन जाता है।

छोड़ छदन प्राचीन, नये दल वृक्षों ने धारे,
देख विनाश, विकाश, रूप, रूपक न्यारे-न्यारे,
दुरङ्गी चैत दिखाता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन
..

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इस महीने :
'ओ माँ बयार'
शान्ति मेहरोत्रा


सूरज को, कच्ची नींद से
जगाओ मत।
दूध-मुँहे बालक-सा
दिन भर झुंझलायेगा
मचलेगा, अलसायेगा
रो कर, चिल्ला कर,
घर सिर पर उठायेगा।
आदत बुरी है यह
..

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इस महीने :
'आए दिन अलावों के'
इन्दिरा किसलय


आए दिन
जलते हुए, अलावों के !!

सलोनी सांझ
मखमली अंधेरा
थमा हुआ शोर
हर ओर
जी उठे दृश्य
मनोरम गांवों के !!

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