अप्रतिम कविताएँ
जब पेड़ उखड़ता है
जंगल से गुजरते हुए उसने
ओक के पेड़ की पत्तियों को चूमा
जैसे अपनी माँ की हथेलियों को चूमा
कहा - यह मेरी माँ का हाथ पकड़कर बड़ा हुआ है
इसके पास आज भी उसका स्पर्श है
जंगल का हाथ पकड़कर
मेरे पुरखे भी बड़े हुए
वे नहीं हैं पर यह आज भी वहीं खड़ा है
इसने मेरे पुरखों की स्मृतियों
और स्पर्शों को बचाकर रखा है
उन्हें महसूस करने के लिए
मैं इन्हें छूता हूँ, चूमता हूँ
मैं इनसे प्यार करता हूँ

जानती हो?
एक पेड़ के उखड़ने से
वह एक बार उखड़ता है
पर उससे जुड़ा आदमी
दो बार उखड़ता है
एक बार अपनी ज़मीन से उखड़ता है
और दूसरी बार अपनों की
स्मृतियों के स्पर्श से उजड़ता है ।
- जसिन्ता केरकेट्टा
जसिन्ता केरकेट्टा की कविता संग्रह 'प्रेम में पेड़ होना' (राजकमल प्रकाशन) से
विषय:
प्रकृति (41)
पेड़ (6)

काव्यालय को प्राप्त: 26 Oct 2021. काव्यालय पर प्रकाशित: 14 Jun 2024

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इस महीने :
'हमारी सहयात्रा'
ज्योत्सना मिश्रा


कभी-कभी जीवन कोई घोषणा नहीं करता—
वह बस बहता है,
जैसे कोई पुराना राग,
धीरे-धीरे आत्मा में उतरता हुआ,
बिना शोर, बिना आग्रह।

हमारे साथ के तीस वर्ष पूर्ण हुए हैं।
कभी लगता है हमने समय को जिया,
कभी लगता है समय ने हमें तराशा।
यह साथ केवल वर्ष नहीं थे—
यह दो आत्माओं का मौन संवाद था,
जो शब्दों से परे,
पर भावों से भरपूर रहा।

जब हमने साथ चलना शुरू किया,
तुम थे स्वप्नद्रष्टा—
शब्दों के जादूगर,
भविष्य के रंगीन रेखाचित्रों में डूबे हुए।
और मैं…
मैं थी वह ज़मीन
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'तुम तो पहले ऐसे ना थे'
सत्या मिश्रा


तुम तो पहले ऐसे न थे
रात बिरात आओगे
देर सवेर आओगे
हम नींद में रहें
आँख ना खुले
तो रूठ जाओगे...

स्वप्न में आओगे
दिवास्वप्न दिखाओगे
हम कलम उठाएँगे
तो छिप जाओगे...

बेचैनियों का कभी
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
इस महीने :
'कुछ प्रेम कविताएँ'
प्रदीप शुक्ला


1.
प्रेम कविता, कहानियाँ और फ़िल्में
जहाँ तक ले जा सकती हैं
मैं गया हूँ उसके पार
कई बार।
इक अजीब-सी बेचैनी होती है वहाँ
जी करता है थाम लूँ कोई चीज
कोई हाथ, कोई सहारा।
मैं टिक नहीं पाता वहाँ देर तक।।

सुनो,
अबसे
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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