अप्रतिम कविताएँ

तेरी हँसी कृष्ण विवर सी
हमारे ब्रह्माण्ड में कृष्ण विवर नामक अत्यंत सघन पिंड हैं जिन्हें अंग्रेजी में black hole कहते हैं। इनका गुरुत्वाकर्षण इतना सशक्त होता है कि उनमें सब कुछ अपने में समा लेने की और सब कुछ ग्रहण कर लेने की क्षमता होती है। यह कविता इसी प्रतीक पर आधारित है।

छोटी सी दुनिया
कितने सारे लोग
रज तम सत का
विभिन्न संयोग।
सहूलियत के हिसाब से
बाँट लिया,
कितने नामों से
पुकार लिया,
मान्यताओं और परम्पराओं में
जकड़ लिया।
किसी ने कहा-
तू है
किसी ने कहा-
तू नहीं है
किसी ने मौन साध लिया।
कोई कहता-
तू एक है
कोई कहता-
तू अनेक है
किसी ने माना–
तेरा रूप है
किसी ने माना-
तू अरूप है
सदियों से बहस होती रही
बहस जंग में तब्दील हुई
तलवारें खिंच गई
बंदूकें तन गई
और तू
हँसता रहा

तेरी हँसी-
कृष्ण विवर सी
ज्ञान-अज्ञान
सूक्ष्म-स्थूल
प्रेम-घृणा
स्वाद-अस्वाद
मान-अपमान
जन्म-मृत्यु
कण-कण
हर क्षण
समाता रहा
समाता रहा
और तू
हँसता रहा
हँसता रहा
हँसता रहा
- पूनम सिन्हा
विषय:
कृष्ण (18)
गणित विज्ञान (9)

काव्यालय पर प्रकाशित: 27 Dec 2016

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इस महीने :
'युद्ध की विभीषिका'
गजेन्द्र सिंह


युद्ध अगर अनिवार्य है सोचो समरांगण का क्या होगा?
ऐसे ही चलता रहा समर तो नई फसल का क्या होगा?

हर ओर धुएँ के बादल हैं, हर ओर आग ये फैली है।
बचपन की आँखें भयाक्रान्त, खण्डहर घर, धरती मैली है।
छाया नभ में काला पतझड़, खो गया कहाँ नीला मंजर?
झरनों का गाना था कल तक, पर आज मौत की रैली है।

किलकारी भरते ..

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'नव ऊर्जा राग'
भावना सक्सैना


ना अब तलवारें, ना ढाल की बात है,
युद्ध स्मार्ट है, तकनीक की सौगात है।
ड्रोन गगन में, सिग्नल ज़मीन पर,
साइबर कमांड है अब सबसे ऊपर।

सुनो जवानों! ये डिजिटल रण है,
मस्तिष्क और मशीन का यह संगम है।
कोड हथियार है और डेटा ... ..

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इस महीने :
'दरवाजे में बचा वन'
गजेन्द्र सिंह


भीगा बारिश में दरवाजा चौखट से कुछ झूल गया है।
कभी पेड़ था, ये दरवाजा सत्य ये शायद भूल गया है।

नये-नये पद चिन्ह नापता खड़ा हुआ है सहमा-सहमा।
कभी बना था पेड़ सुहाना धूप-छाँव पा लमहा-लमहा।
चौखट में अब जड़ा हुआ है एक जगह पर खड़ा हुआ है,
कभी ठिकाना था विहगों का आज ...

..

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