हमारे ब्रह्माण्ड में कृष्ण विवर नामक अत्यंत सघन पिंड हैं जिन्हें अंग्रेजी में black hole कहते हैं। इनका गुरुत्वाकर्षण इतना सशक्त होता है कि उनमें सब कुछ अपने में समा लेने की और सब कुछ ग्रहण कर लेने की क्षमता होती है। यह कविता इसी प्रतीक पर आधारित है।
छोटी सी दुनिया
कितने सारे लोग
रज तम सत का
विभिन्न संयोग।
सहूलियत के हिसाब से
बाँट लिया,
कितने नामों से
पुकार लिया,
मान्यताओं और परम्पराओं में
जकड़ लिया।
किसी ने कहा-
तू है
किसी ने कहा-
तू नहीं है
किसी ने मौन साध लिया।
कोई कहता-
तू एक है
कोई कहता-
तू अनेक है
किसी ने माना–
तेरा रूप है
किसी ने माना-
तू अरूप है
सदियों से बहस होती रही
बहस जंग में तब्दील हुई
तलवारें खिंच गई
बंदूकें तन गई
और तू
हँसता रहा
तेरी हँसी-
कृष्ण विवर सी
ज्ञान-अज्ञान
सूक्ष्म-स्थूल
प्रेम-घृणा
स्वाद-अस्वाद
मान-अपमान
जन्म-मृत्यु
कण-कण
हर क्षण
समाता रहा
समाता रहा
और तू
हँसता रहा
हँसता रहा
हँसता रहा