अप्रतिम कविताएँ
शून्य
नौ असम अंक, और एक सम आधार,
‘आदि’ से ‘अन्त’ तक जुड़ा वह बेछोर वक्री आकार, ‘शून्य’।

सुबह के उत्तेजित मुख पर छिटका सिन्दूर,
पराजित शाम की रगों में ठंडा होता खून!
झील की असीम शांति में सोया,
सागर लाहरों के ताण्डव में खोया ।
नीले आकाश की रिक्तता से रिक्त,
आकाश गंगा के तारों में फैला विस्तृत,
विशाल ‘शून्य’ ।

तरुणी के चंचल नयनों की थाह,
‘प्रेम – मोह’ के मध्य वह संकरी सी राह ।
सम्बंधों के चौराहे पर, संकल्पों का पेड़,
तिन – तिन कर झरते पत्ते, यह मौसम का फेर ।
खण्डित, बोझिल हृदय का एकांत,
मन – मस्तिष्क का चलता युध्द नितांत ।
सब ‘शून्य’ ।

स्वार्थ के मंच पर भावनाओं से क्रीड़ा,
पत्थर तोड़ते नाज़ुक हृदय की पीड़ा ।
तर्क तक सीमित वह ज्ञान,
प्रकृति से जूझता, असफल विज्ञान ।
लाशों के ढेर पर जनतंत्र की पताका,
‘उत्पत्ति’ के नाम पर एटम – बम का धमाका ।
और फिर ‘शून्य’ ।

पर ‘आत्म’ बेकल भटकता है, परमात्म पाने को,
विडम्बनाओं और आस्थाओं की भीड़ में ,
खोजता ‘शून्य’ को एक ‘शून्य’ ।
- संजीव शर्मा
Sanjeev Sharma
Email: sanjeev.sharma<at>gmail.com
विषय:
विविध (11)
अध्यात्म दर्शन (34)
गणित विज्ञान (8)

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इस महीने :
'एक आशीर्वाद'
दुष्यन्त कुमार


जा तेरे स्वप्न बड़े हों।
भावना की गोद से उतर कर
जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें।
चाँद तारों सी अप्राप्य ऊँचाइयों के लिये
रूठना मचलना सीखें।
हँसें
मुस्कुराऐं
..

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इस महीने :
'तोंद'
प्रदीप शुक्ला


कहते हैं सब लोग तोंद एक रोग बड़ा है
तोंद घटाएँ सभी चलन यह खूब चला है।
पर मानो यदि बात तोंद क्यों करनी कम है
सुख शान्ति सम्मान दायिनी तोंद में दम है।

औरों की क्या कहूं, मैं अपनी बात बताता
बचपन से ही रहा तोंद से सुखमय नाता।
जिससे भी की बात, अदब आँखों में पाया
नाम न लें गुरु, यार, मैं पंडित 'जी' कहलाया।

आज भी ऑफिस तक में तोंद से मान है मिलता
कितना भी हो बॉस शीर्ष, शुक्ला 'जी' कहता।
मान का यह
..

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छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 5 गीतों की ओर

वाणी मुरारका
इस महीने :
'सीमा में संभावनाएँ'
चिराग जैन


आदेशों का दास नहीं है शाखा का आकार कभी,
गमले तक सीमित मत करना पौधे का संसार कभी।

जड़ के पाँव नहीं पसरे तो छाँव कहाँ से पाओगे?
जिस पर पंछी घर कर लें वो ठाँव कहाँ से लाओगे?
बालकनी में बंध पाया क्या, बरगद का ..

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