शरद सुधाकर
हृदय गगन के शरद-सुधाकर,
बिखरा कर निज पुण्य-प्रकाश,
उर अम्बर को उज्ज्वल कर दो
कृपा-किरण फैला कर आज।
त्रिविध ताप संतप्त प्राण को,
शीतल सुधा पिला दो आज॥
मानस-उर-में खिले कुमुदिनी,
मधुर मालती महक उठे।
मन चकोर तव दर्शन प्यासे,
थकित विलोचन, मृदु चितवन,
निर्निमेष तव रूप निहारे,
रोम-रोम में हो पुलकन॥
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राजकुमारी नंदन
शरद : वर्षा के बाद, ठंड के पहले की ऋतु; सुधाकर : चांद; उर : दिल ; त्रिविध ताप : तीन प्रकार के ताप, अर्थात सभी कष्ट; संतप्त : व्यथित; कुमुदिनी : कमल जैसा कमल से छोटा सफेद फूल; मालती : चाँदनी, एक प्रकार का फूल; विलोचन : नयन; मृदु : कोमल; चितवन : दृष्टि; निर्निमेष : अपलक
कविता साभार:
कविता कोश से
काव्यालय को प्राप्त: 1 Jan 1900.
काव्यालय पर प्रकाशित: 11 Oct 2019
तोड़ दो सीमा क्षितिज की,
गगन का विस्तार ले लोविनोद तिवारी की कविता
"प्यार का उपहार" का वीडियो। उपहार उनका और वीडियो द्वारा उपहार का सम्प्रेषण भी वह ही कर रहे हैं। सरल श्रृंगार रस और अभिसार में भीगा, फिर भी प्यार का उपहार ऐसा जो व्यापक होने को प्रेरित करे।
प्यार का उपहार