अप्रतिम कविताएँ पाने
सत्यं शिवं सुन्दरम्
सच का दर्पण ही शिव-दर्शन
शिव से ही कुछ सुन्दर उपजाओ
विष से अमृत बना
शूल से फूल खिला
जीवन के हर पतझड़ को
नव-वसंत सा महकाओ

वसुधा के कण-कण तृण-तृण में
सूरज चंदा नीलगगन में
नदिया पर्वत और पवन में
कोटि-कोटि जन के तन-मन में
सिमटी उस विराट शक्ति को
मन-मंदिर में सदा बसाओ
शिव से ही कुछ सुन्दर उपजाओ

कुंठाओं में मुस्कान भरो
टूटी वीणा में तान भरो
बन मलय पवन का झोंका
टूटी साँसों में नवप्राण भरो
कुछ पलकों पर बिखरे मोती चुन
घावों का मरहम बन जाओ
शिव से ही कुछ सुन्दर उपजाओ

पल-पल बहती जीवन-धारा
देती बूँद-बूँद अहसास
रुकना मत गति ही जीवन
सिमटी है साँस-साँस में आस
मत डूब निराशा-तम में
आशाओं को जीवन-दीप बनाओ
शिव से ही कुछ सुन्दर उपजाओ

कहता तेरा लक्ष्य निरन्तर
बढ़ता जा तू अपने पथ पर
चिन्तन में चैतन्य जगाकर
जीवन में कुछ तो अद्भुत कर
पथ पर कुछ पद-चिह्न बनाकर
काल-शिला पर कुछ लिख जाओ
शिव से ही कुछ सुन्दर उपजाओ
- सुधीर कुमार शर्मा

काव्यालय को प्राप्त: 19 Aug 2017. काव्यालय पर प्रकाशित: 6 Dec 2019

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इस महीने :
'साँझ फागुन की'
रामानुज त्रिपाठी


फिर कहीं मधुमास की पदचाप सुन,
डाल मेंहदी की लजीली हो गई।

दूर तक अमराइयों, वनवीथियों में
लगी संदल हवा चुपके पाँव रखने,
रात-दिन फिर कान आहट पर लगाए
लगा महुआ गंध की बोली परखने

दिवस मादक होश खोए लग रहे,
साँझ फागुन की नशीली हो गई।

हँसी शाखों पर कुँवारी मंजरी
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इस महीने :
'यूँ छेड़ कर धुन'
कमलेश पाण्डे 'शज़र'


यूँ छेड़ कर धुन कोई सुमधुर रुक गया
कि मैं विवश सा गुनगुनाता रहा
सारी रात
उस छूटे हुए टूटे हुए सुर को
सुनहरी पंक्तियों के वस्त्र पहनाता रहा
गाता रहा

यूँ छेड़ कर धुन कोई सुमधुर रुक गया
कि मैं मानस की दीवारों पर

..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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