अप्रतिम कविताएँ
समय की शिला पर
समय की शिला पर मधुर चित्र कितने
किसी ने बनाये, किसी ने मिटाये।

       किसी ने लिखी आँसुओं से कहानी
       किसी ने पढ़ा किन्तु दो बूंद पानी
       इसी में गये बीत दिन ज़िन्दगी के
       गयी घुल जवानी, गयी मिट निशानी।
विकल सिन्धु के साध के मेघ कितने
धरा ने उठाये, गगन ने गिराये।

       शलभ ने शिखा को सदा ध्येय माना,
       किसी को लगा यह मरण का बहाना,
       शलभ जल न पाया, शलभ मिट न पाया
       तिमिर में उसे पर मिला क्या ठिकाना?
प्रणय-पंथ पर प्राण के दीप कितने
मिलन ने जलाये, विरह ने बुझाये।

       भटकती हुई राह में वंचना की
       रुकी श्रांत हो जब लहर चेतना की
       तिमिर-आवरण ज्योति का वर बना तब
       कि टूटी तभी श्रृंखला साधना की।
नयन-प्राण में रूप के स्वप्न कितने
निशा ने जगाये, उषा ने सुलाये।

       सुरभि की अनिल-पंख पर मौन भाषा
       उड़ी, वंदना की जगी सुप्त आशा
       तुहिन-बिंदु बनकर बिखर पर गये स्वर
       नहीं बुझ सकी अर्चना की पिपासा।
किसी के चरण पर वरण-फूल कितने
लता ने चढ़ाये, लहर ने बहाये।
- शम्भुनाथ सिंह
Ref: Hazaar Varsh Kee Hindi Kavita
Swaantah Sukhaaya
- edited by Kumudini Khaitan
विषय:
जीवन (37)

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इस महीने :
'तुम तो पहले ऐसे ना थे'
सत्या मिश्रा


तुम तो पहले ऐसे न थे
रात बिरात आओगे
देर सवेर आओगे
हम नींद में रहें
आँख ना खुले
तो रूठ जाओगे...

स्वप्न में आओगे
दिवास्वप्न दिखाओगे
हम कलम उठाएँगे
तो छिप जाओगे...

बेचैनियों का कभी
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इस महीने :
'कुछ प्रेम कविताएँ'
प्रदीप शुक्ला


1.
प्रेम कविता, कहानियाँ और फ़िल्में
जहाँ तक ले जा सकती हैं
मैं गया हूँ उसके पार
कई बार।
इक अजीब-सी बेचैनी होती है वहाँ
जी करता है थाम लूँ कोई चीज
कोई हाथ, कोई सहारा।
मैं टिक नहीं पाता वहाँ देर तक।।

सुनो,
अबसे
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इस महीने :
'स्वतंत्रता का दीपक'
गोपालसिंह नेपाली


घोर अंधकार हो, चल रही बयार हो,
आज द्वार द्वार पर यह दिया बुझे नहीं।
यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है।

शक्ति का दिया हुआ, शक्ति को दिया हुआ,
भक्ति से दिया हुआ, यह स्वतंत्रता-दिया,
रुक रही न नाव हो, ज़ोर का बहाव हो,
आज गंगधार पर यह दिया बुझे नहीं!
यह स्वदेश का दिया प्राण के समान है!
..

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