अप्रतिम कविताएँ

पुष्प की अभिलाषा
चाह नहीं मैं सुरबाला के
                  गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं, प्रेमी-माला में
                  बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं, सम्राटों के शव
                  पर हे हरि, डाला जाऊँ,
चाह नहीं, देवों के सिर पर
                  चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ।
मुझे तोड़ लेना वनमाली!
                  उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
                  जिस पथ जावें वीर अनेक
- माखनलाल चतुर्वेदी
काव्यपाठ: विनोद तिवारी

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इस महीने :
'या देवी...'
उपमा ऋचा


1
सृष्टि की अतल आंखों में
फिर उतरा है शक्ति का अनंत राग
धूम्र गंध के आवक स्वप्न रचती
फिर लौट आई है देवी
रंग और ध्वनि का निरंजन नाद बनकर
लेकिन अभी टूटी नहीं है धरती की नींद
इसलिए जागेगी देवी अहोरात्र...

2
पूरब में शुरू होते ही
दिन का अनुष्ठान
जाग उठी हैं सैकड़ों देवियाँ
एक-साथ
ये देवियाँ जानती हैं कि
..

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