अप्रतिम कविताएँ पाने

पुष्प की अभिलाषा
चाह नहीं मैं सुरबाला के
                  गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं, प्रेमी-माला में
                  बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं, सम्राटों के शव
                  पर हे हरि, डाला जाऊँ,
चाह नहीं, देवों के सिर पर
                  चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ।
मुझे तोड़ लेना वनमाली!
                  उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
                  जिस पथ जावें वीर अनेक
- माखनलाल चतुर्वेदी
काव्यपाठ: विनोद तिवारी

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इस महीने :
'साँझ फागुन की'
रामानुज त्रिपाठी


फिर कहीं मधुमास की पदचाप सुन,
डाल मेंहदी की लजीली हो गई।

दूर तक अमराइयों, वनवीथियों में
लगी संदल हवा चुपके पाँव रखने,
रात-दिन फिर कान आहट पर लगाए
लगा महुआ गंध की बोली परखने

दिवस मादक होश खोए लग रहे,
साँझ फागुन की नशीली हो गई।

हँसी शाखों पर कुँवारी मंजरी
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पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'यूँ छेड़ कर धुन'
कमलेश पाण्डे 'शज़र'


यूँ छेड़ कर धुन कोई सुमधुर रुक गया
कि मैं विवश सा गुनगुनाता रहा
सारी रात
उस छूटे हुए टूटे हुए सुर को
सुनहरी पंक्तियों के वस्त्र पहनाता रहा
गाता रहा

यूँ छेड़ कर धुन कोई सुमधुर रुक गया
कि मैं मानस की दीवारों पर

..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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