अप्रतिम कविताएँ
प्रतिदान में प्रेम
सहेज कर रखना
सुख के उस परम अनुभूति के क्षण को
दो और दो चार हथेलियों के बीच
ज्यों स्वाति नक्षत्र के बूंदों को
जतन से रखता है सीप

पतझड़ के मौसम में
जब यादों की नदी
रेत बन जाएगी
तब स्वाति नक्षत्र की मोती की आभा ही
नर्म हथेलियों की उष्णता को बरकरार रखेगी

एक दिन लौटेगा पथिक
जोगी के वेश में
मांगेगा प्रेम का प्रतिदान भिक्षा में
हो सके तो अंकपाश में जकड़ लेना
पतझड़ में वसंत को कोई
यूँ ही जाने भी देता है क्या?



- राज्यवर्द्धन
चित्रकार: नूपुर अशोक

काव्यालय को प्राप्त: 31 Jan 2022. काव्यालय पर प्रकाशित: 4 Feb 2022

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छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 3 खास विषयों पर लिखना

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इस महीने :
'कौन तुम'
डा. महेन्द्र भटनागर


कौन तुम अरुणिम उषा-सी मन-गगन पर छा गयी हो!

              लोक धूमिल रँग दिया अनुराग से,
              मौन जीवन भर दिया मधु राग से,
              दे दिया संसार सोने का सहज
              जो मिला करता बड़े ही भाग से,
कौन तुम मधुमास-सी अमराइयाँ महका गयी हो!

             वीथियाँ सूने हृदय की ..

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विकल होकर नित्य चंचल,
खोजती जब नींद के पल,
चेतना थक-सी रही तब,
मैं मलय की वात रे मन!

चिर-विषाद-विलीन मन की,
इस व्यथा के तिमिर-वन की;
..

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