अप्रतिम कविताएँ
प्रतिदान में प्रेम
सहेज कर रखना
सुख के उस परम अनुभूति के क्षण को
दो और दो चार हथेलियों के बीच
ज्यों स्वाति नक्षत्र के बूंदों को
जतन से रखता है सीप

पतझड़ के मौसम में
जब यादों की नदी
रेत बन जाएगी
तब स्वाति नक्षत्र की मोती की आभा ही
नर्म हथेलियों की उष्णता को बरकरार रखेगी

एक दिन लौटेगा पथिक
जोगी के वेश में
मांगेगा प्रेम का प्रतिदान भिक्षा में
हो सके तो अंकपाश में जकड़ लेना
पतझड़ में वसंत को कोई
यूँ ही जाने भी देता है क्या?



- राज्यवर्द्धन
चित्रकार: नूपुर अशोक

काव्यालय को प्राप्त: 31 Jan 2022. काव्यालय पर प्रकाशित: 4 Feb 2022

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इस महीने :
'काल का वार्षिक विलास'
नाथूराम शर्मा 'शंकर'


सविता के सब ओर मही माता चकराती है,
घूम-घूम दिन, रात, महीना वर्ष मनाती है,
कल्प लों अन्त न आता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन जाता है।

छोड़ छदन प्राचीन, नये दल वृक्षों ने धारे,
देख विनाश, विकाश, रूप, रूपक न्यारे-न्यारे,
दुरङ्गी चैत दिखाता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन
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इस महीने :
'ओ माँ बयार'
शान्ति मेहरोत्रा


सूरज को, कच्ची नींद से
जगाओ मत।
दूध-मुँहे बालक-सा
दिन भर झुंझलायेगा
मचलेगा, अलसायेगा
रो कर, चिल्ला कर,
घर सिर पर उठायेगा।
आदत बुरी है यह
..

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इस महीने :
'आए दिन अलावों के'
इन्दिरा किसलय


आए दिन
जलते हुए, अलावों के !!

सलोनी सांझ
मखमली अंधेरा
थमा हुआ शोर
हर ओर
जी उठे दृश्य
मनोरम गांवों के !!

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