अप्रतिम कविताएँ
प्रतिदान में प्रेम
सहेज कर रखना
सुख के उस परम अनुभूति के क्षण को
दो और दो चार हथेलियों के बीच
ज्यों स्वाति नक्षत्र के बूंदों को
जतन से रखता है सीप

पतझड़ के मौसम में
जब यादों की नदी
रेत बन जाएगी
तब स्वाति नक्षत्र की मोती की आभा ही
नर्म हथेलियों की उष्णता को बरकरार रखेगी

एक दिन लौटेगा पथिक
जोगी के वेश में
मांगेगा प्रेम का प्रतिदान भिक्षा में
हो सके तो अंकपाश में जकड़ लेना
पतझड़ में वसंत को कोई
यूँ ही जाने भी देता है क्या?



- राज्यवर्द्धन
चित्रकार: नूपुर अशोक
विषय:
जीवन (37)
प्रेम (62)

काव्यालय को प्राप्त: 31 Jan 2022. काव्यालय पर प्रकाशित: 4 Feb 2022

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इस महीने :
'हमारी सहयात्रा'
ज्योत्सना मिश्रा


कभी-कभी जीवन कोई घोषणा नहीं करता—
वह बस बहता है,
जैसे कोई पुराना राग,
धीरे-धीरे आत्मा में उतरता हुआ,
बिना शोर, बिना आग्रह।

हमारे साथ के तीस वर्ष पूर्ण हुए हैं।
कभी लगता है हमने समय को जिया,
कभी लगता है समय ने हमें तराशा।
यह साथ केवल वर्ष नहीं थे—
यह दो आत्माओं का मौन संवाद था,
जो शब्दों से परे,
पर भावों से भरपूर रहा।

जब हमने साथ चलना शुरू किया,
तुम थे स्वप्नद्रष्टा—
शब्दों के जादूगर,
भविष्य के रंगीन रेखाचित्रों में डूबे हुए।
और मैं…
मैं थी वह ज़मीन
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'तुम तो पहले ऐसे ना थे'
सत्या मिश्रा


तुम तो पहले ऐसे न थे
रात बिरात आओगे
देर सवेर आओगे
हम नींद में रहें
आँख ना खुले
तो रूठ जाओगे...

स्वप्न में आओगे
दिवास्वप्न दिखाओगे
हम कलम उठाएँगे
तो छिप जाओगे...

बेचैनियों का कभी
..

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इस महीने :
'कुछ प्रेम कविताएँ'
प्रदीप शुक्ला


1.
प्रेम कविता, कहानियाँ और फ़िल्में
जहाँ तक ले जा सकती हैं
मैं गया हूँ उसके पार
कई बार।
इक अजीब-सी बेचैनी होती है वहाँ
जी करता है थाम लूँ कोई चीज
कोई हाथ, कोई सहारा।
मैं टिक नहीं पाता वहाँ देर तक।।

सुनो,
अबसे
..

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