अप्रतिम कविताएँ
प्रतिदान में प्रेम
सहेज कर रखना
सुख के उस परम अनुभूति के क्षण को
दो और दो चार हथेलियों के बीच
ज्यों स्वाति नक्षत्र के बूंदों को
जतन से रखता है सीप

पतझड़ के मौसम में
जब यादों की नदी
रेत बन जाएगी
तब स्वाति नक्षत्र की मोती की आभा ही
नर्म हथेलियों की उष्णता को बरकरार रखेगी

एक दिन लौटेगा पथिक
जोगी के वेश में
मांगेगा प्रेम का प्रतिदान भिक्षा में
हो सके तो अंकपाश में जकड़ लेना
पतझड़ में वसंत को कोई
यूँ ही जाने भी देता है क्या?



- राज्यवर्द्धन
चित्रकार: नूपुर अशोक
विषय:
जीवन (37)
प्रेम (60)

काव्यालय को प्राप्त: 31 Jan 2022. काव्यालय पर प्रकाशित: 4 Feb 2022

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इस महीने :
'छाता '
प्रेमरंजन अनिमेष


जिनके सिर ढँकने के लिए
छतें होती हैं
वही रखते हैं छाते

हर बार सोचता हूँ
एक छत का जुगाड़ करुँगा
और लूँगा एक छाता

इस शहर के लोगों के पास
जो छाता है
उसमें

..

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इस महीने :
'एक मनःस्थिति '
शान्ति मेहरोत्रा


कभी-कभी लगता है
जैसे घर की पक्की छत, दीवारें, चौखटें
मेरी गरम साँसों से पिघल कर
मोम-सी बह गई हैं।

केवल ये खिड़कियाँ-दरवाजे जैसे
कभी ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'खिलौने की चाबी'
नूपुर अशोक


इतनी बार भरी गई है
दुःख, तकलीफ और त्याग की चाबी
कि माँ बन चुकी है एक खिलौना
घूम रही है गोल-गोल
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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