अप्रतिम कविताएँ
पानी उछाल के
आओ हम पतवार फेंककर
कुछ दिन हो लें नदी-ताल के।

नाव किनारे के खजूर से
बाँध बटोरं शंख-सीपियाँ
खुली हवा-पानी से सीखें
शर्म-हया की नई रीतियाँ

बाँचें प्रकृति पुरुष की भाषा
साथ-साथ पानी उछाल के।

लिख डालें फिर नये सिरे से
रँगे हुए पन्नों को धोकर
निजी दायरों से बाहर हो
रागहीन रागों में खोकर

आमंत्रण स्वीकारें उठकर
धूप-छाँव सी हरी डाल के।

नमस्कार पक्के घाटों को
नमस्कार तट के वृक्षों को

हो न सकें यदि लगातार
तब जी लें सुख हम अंतराल के।
- नईम
Poet's Address: Radhagunj Colony, Devas (M.P.)
Ref: Naye Purane, 1999
विषय:
सहजता (8)

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इस महीने :
'हमारी सहयात्रा'
ज्योत्सना मिश्रा


कभी-कभी जीवन कोई घोषणा नहीं करता—
वह बस बहता है,
जैसे कोई पुराना राग,
धीरे-धीरे आत्मा में उतरता हुआ,
बिना शोर, बिना आग्रह।

हमारे साथ के तीस वर्ष पूर्ण हुए हैं।
कभी लगता है हमने समय को जिया,
कभी लगता है समय ने हमें तराशा।
यह साथ केवल वर्ष नहीं थे—
यह दो आत्माओं का मौन संवाद था,
जो शब्दों से परे,
पर भावों से भरपूर रहा।

जब हमने साथ चलना शुरू किया,
तुम थे स्वप्नद्रष्टा—
शब्दों के जादूगर,
भविष्य के रंगीन रेखाचित्रों में डूबे हुए।
और मैं…
मैं थी वह ज़मीन
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'तुम तो पहले ऐसे ना थे'
सत्या मिश्रा


तुम तो पहले ऐसे न थे
रात बिरात आओगे
देर सवेर आओगे
हम नींद में रहें
आँख ना खुले
तो रूठ जाओगे...

स्वप्न में आओगे
दिवास्वप्न दिखाओगे
हम कलम उठाएँगे
तो छिप जाओगे...

बेचैनियों का कभी
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
इस महीने :
'कुछ प्रेम कविताएँ'
प्रदीप शुक्ला


1.
प्रेम कविता, कहानियाँ और फ़िल्में
जहाँ तक ले जा सकती हैं
मैं गया हूँ उसके पार
कई बार।
इक अजीब-सी बेचैनी होती है वहाँ
जी करता है थाम लूँ कोई चीज
कोई हाथ, कोई सहारा।
मैं टिक नहीं पाता वहाँ देर तक।।

सुनो,
अबसे
..

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