अप्रतिम कविताएँ
पानी उछाल के
आओ हम पतवार फेंककर
कुछ दिन हो लें नदी-ताल के।

नाव किनारे के खजूर से
बाँध बटोरं शंख-सीपियाँ
खुली हवा-पानी से सीखें
शर्म-हया की नई रीतियाँ

बाँचें प्रकृति पुरुष की भाषा
साथ-साथ पानी उछाल के।

लिख डालें फिर नये सिरे से
रँगे हुए पन्नों को धोकर
निजी दायरों से बाहर हो
रागहीन रागों में खोकर

आमंत्रण स्वीकारें उठकर
धूप-छाँव सी हरी डाल के।

नमस्कार पक्के घाटों को
नमस्कार तट के वृक्षों को

हो न सकें यदि लगातार
तब जी लें सुख हम अंतराल के।
- नईम
Poet's Address: Radhagunj Colony, Devas (M.P.)
Ref: Naye Purane, 1999

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'बेकली महसूस हो तो'
विनोद तिवारी

बेकली महसूस हो तो गुनगुना कर देखिये।
दर्द जब हद से बढ़े तब मुस्कुरा कर देखिये।

रूठते हैं लोग बस मनुहार पाने के लिए
लौट आएगा, उसे फिर से बुला कर देखिये।

आपकी ही याद में शायद वह हो खोया हुआ
पास ही होगा कहीं, आवाज़ देकर देखिये।

हारती है बस मोहब्बत ही ख़ुदी के खेल में
हार कर अपनी ख़ुदी, उसको...

पूरी ग़ज़ल यहां पढ़ें
इस महीने :
'पुकार'
अनिता निहलानी


कोई कथा अनकही न रहे
व्यथा कोई अनसुनी न रहे,
जिसने कहना-सुनना चाहा
वाणी उसकी मुखर हो रहे!

एक प्रश्न जो सोया भीतर
एक जश्न भी खोया भीतर,
जिसने उसे जगाना चाहा
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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