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जमाल सुरेया
जमाल सुरेया की काव्यालय पर रचनाएँ
स्त्री चल देती है चुप चाप

जमाल सुरेया (1931-1990) तुर्क कविता की नयी धारा के प्रमुख कवियों में शुमार किये जाते हैं और आज भी नाज़िम हिकमत जैसे कवियों के साथ उनकी कवितायें पढ़ी सुनी जाती हैं। गहरे जातीय और क्षेत्रवादी विभाजन से ग्रसित तुर्क समाज में उनको जीवन पर्यन्त विस्थापन और भेदभाव झेलना पड़ा पर जनता के बीच उनकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई। उन्होंने कई साहित्यिक पत्रिकाओं का संपादन भी किया और अनेक संकलन प्रकाशित हैं। उनके गीत फिल्मों में भी बेहद लोकप्रिय हुए।

वे तुर्की के पुलुमुर शहर में जमालुद्दीन सुरेया सेबर के रूप में जन्मे पर सात वर्ष की उम्र में ही उनके परिवार को राजनैतिक उथलपुथल के कारण विस्थापित होकर दूसरे इलाके में जाना पड़ा - अगले ही साल वहाँ बड़ा विनाशकारी भूकंप आया। बताया जाता है कि इन दो घटनाओं ने सुरेया के जीवन पर गहरा प्रभाव डाला और उनकी रचनाओं में उनकी ध्वनि मिलती है। राजनीति शास्त्र की पढ़ाई करने वाले सुरेया की कविताओं का मुख्य स्वर "शरीरी प्रेम" है। वे तुर्की की दूसरी पीढ़ी के उत्तर आधुनिक साहित्यिक आंदोलन के मुख्य प्रतिनिधि माने जाते हैं।

कवि की तस्वीर http://m.ensonhaber.com/biyografi/yazar/cemal-sureya-kimdir से साभार

कवि का परिचय साभार यादवेन्द्र


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