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सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' की काव्यालय पर रचनाएँ
नदी के द्वीप

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का जन्म 7 मार्च 1911 को उत्तर प्रदेश के कसया (आधुनिक कुशीनगर) में हुआ। उनकी आरंभिक शिक्षा-दीक्षा घर पर ही हुई जहाँ उन्हें संस्कृत, फ़ारसी, अँग्रेज़ी और बांग्ला भाषा और साहित्य की शिक्षा दी गई। हिंदी साहित्य में उनकी प्रतिष्ठा एक बहुमुखी प्रतिभासंपन्न कवि, संपादक, ललित-निबंधकार और उपन्यासकार के रूप में है। इसके साथ ही उन्होंने अपने यात्रा वृतांत, अनुवाद, आलोचना, संस्मरण, डायरी, विचार-गद्य एवं नाटक से भी हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है।

अज्ञेय को कविता में ‘प्रयोगवाद’ का प्रवर्तक कहा जाता है। उनके संपादन में निकले ‘तार सप्तक’ और ‘दूसरा सप्तक’ की प्रयोगवादी काव्य प्रवृत्तियों को देखते हुए इसे एक नई धारा के रूप में चिह्नित किया गया। इसे पूर्व की काव्य प्रवृत्तियों ‘छायावाद’ और ‘प्रगतिवाद’ की प्रतिक्रिया में व्युत्पन्न माना गया है। अज्ञेय को ‘नई कविता’ धारा का भी पथ-प्रदर्शक माना जाता है। उनके संपादन में प्रकाशित ‘दूसरा सप्तक’ और ‘तीसरा सप्तक’ के कवि नई कविता के प्रमुख कवियों में शामिल हैं।

अज्ञेय को ‘आँगन के पार द्वार’ के लिए वर्ष 1964 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार और ‘कितनी नावों में कितनी बार’ के लिए वर्ष 1978 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

सूचना साभार - हिन्दवी


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