अप्रतिम कविताएँ
निछावर तुम पर
मैं दीपशिखा सी जलूं तुम्हारे पथ पर।
मेरा सारा संसार निछावर तुम पर।

मेरी आशा, अभिलाषाओं के उद्गम।
मेरे सुहाग, मेरे सिंगार के संगम।

मेरे अतीत, मेरे भविष्य के दर्पण।
मेरा सतीत्व, नारीत्व तुम्ही को अर्पण।

अपना व्याकुल कौमार्य्य संभाले लाई।
अतिशय पीड़ा का भार उठाये आई।

स्वीकार करो ये युगों युगों से संचित।
मेरी पूजा के पुष्प तुम्ही को अर्चित।

मेरे अपेक्ष्य, आराध्य देव सर्वोपर,
तुम सूर्य सरीखे सजो निरन्तर नभ पर।

मैं दीपशिखा सी जलूं तुम्हारे पथ पर।
मधु का सारा माधुर्य्य निछावर तुम पर।
- मधु
दीपशिखा : दीपक की लौ; उद्गम : उत्पत्ति का स्थान; सूर्य सरीखे : सूर्य के समान

काव्यालय पर प्रकाशित: 3 Apr 2020

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भाग 6 लय में लय तोड़ना

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भाग 5 गीतों की ओर

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'सीमा में संभावनाएँ'
चिराग जैन


आदेशों का दास नहीं है शाखा का आकार कभी,
गमले तक सीमित मत करना पौधे का संसार कभी।

जड़ के पाँव नहीं पसरे तो छाँव कहाँ से पाओगे?
जिस पर पंछी घर कर लें वो ठाँव कहाँ से लाओगे?
बालकनी में बंध पाया क्या, बरगद का ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...

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कौन तुम अरुणिम उषा-सी मन-गगन पर छा गयी हो!

              लोक धूमिल रँग दिया अनुराग से,
              मौन जीवन भर दिया मधु राग से,
              दे दिया संसार सोने का सहज
              जो मिला करता बड़े ही भाग से,
कौन तुम मधुमास-सी अमराइयाँ महका गयी हो!

             वीथियाँ सूने हृदय की ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...

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