अप्रतिम कविताएँ
मिसरी सा अगहन
शीतकाल के चाप से
निकल रहे हैं तीर
कुहरे की चादर पहन
मौसम हुआ अधीर

ओस-ओस मोती झरे
ठिठुर रही है रात
चंदा करे चकोर से
भीगी- भीगी बात

देख गुलाबी धूप को
भूल गये सब छाँव
धूप निखारे रूप को
रूप निखारे गाँव

लुकाछिपी अब धूप की
शरमा उठे गुलाब
साँझ ढले चौपाल पर
बजने लगे रबाब

चखी मिठाई ईख की
मीठा - मीठा मन
उस पर बातें मीत की
मिसरी सा अगहन

ओझल-बोझिल बर्फ़ है
धरती पर चहुं ओर
सन्नाटों के पल सभी
लगे मचाने शोर

खुशबू की गठरी खुली
क्यारी- क्यारी फूल
कमसिन पछुवा भी चले
मौसम के अनुकूल।
- पारुल तोमर
रबाब - एक पारम्परिक वाद्य यंत्र। पछुआ - पश्चिम से चलने वाली हवा। सर्दियों में चलती है।
अगहन - वर्ष का नौंवा महीना अगहन अथवा अग्रहायण के नाम से जाना जाता है। इसका प्रचलित नाम मार्गशीर्ष एवम् मगसर हैं।
स्वतंत्र लेखिका एवम् स्व-प्रशिक्षित चित्रकार पारुल तोमर के शब्दों और रंगों में भारतीय संस्कृति की खुशबू रची-बसी होती है। उनका एकल कविता संग्रह 'संझा-बाती' एक चर्चित संग्रह रहा है।

काव्यालय को प्राप्त: 8 Dec 2021. काव्यालय पर प्रकाशित: 10 Dec 2021

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'अमरत्व'
क्लेर हार्नर


कब्र पे मेरी बहा ना आँसू
हूँ वहाँ नहीं मैं, सोई ना हूँ।

झोंके हजारों हवाओं की मैं
चमक हीरों-सी हिमकणों की मैं
शरद की गिरती फुहारों में हूँ
फसलों पर पड़ती...
..

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