कर्म दैविक सम्पदा का द्वार है;
विश्व के उत्कर्ष का आधार है।
कर्म पूजा, साधना का धाम है;
कर्मयोगी को कहाँ विश्राम है।
कर्म भावी योजना का न्यास है;
सत्य-चित-आनन्द का अभ्यास है।
कर्म जीवन का मधुरतम काव्य है;
कर्म से ही मुक्ति भी सम्भाव्य है।
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किरीटचन्द्र जोशी