अप्रतिम कविताएँ
थारी साली छां
गणगौर पूजा में औरतें यह मारवाड़ी सीठना गाती हैं।
जयपुर में, चौड़ा रास्ता में, गणगौर के दिन ईसर-गणगौर की बड़ी झांकी निकलती है। पूरे रास्ते औरतें झरोखों से देखती हैं।

मारवाड़ी मूल

थारी साली छां

शब्दार्थ


ईसर जी तो पेचो बान्ध
गोरांबाई पेंच संवार ओ राज
म्हें ईसर थारी साली छां


ईसर: ईश्वर, शिवजी; पेचो: पगड़ी
गोरांबाई: गौरी; पेंच: पगड़ी के घुमाव
म्हें: मैं (हम लोग); थारी: आपकी; छां: हैं

साली छां मतवारी ओ राज
भंवर पटां पर वारी ओ राज
केसर की सी क्यारी ओ राज
लूंगा की सी बाड़ी ओ राज
म्हें ईसर थारी साली छां


भंवर पटां पर वारी: शिव के बाल पर फिदा

लौंग का बगीचा

ईसर जी तो मोती पैर
गोरांबाई गर्दन सवांर ओ राज
म्हें ईसर थारी साली छां

ईसर जी तो बींटी पैर
गोरांबाई आंगली सवांर ओ राज
म्हें ईसर थारी साली छां

बींटी: अंगूठी

ईसर जी तो बागो पैर
गोरांबाई कली सवांर ओ राज
म्हें ईसर थारी साली छां

बागो: अंगरखा

ईसर जी तो मोचा पैर
गोरांबाई चाल सवांर ओ राज
म्हें ईसर थारी साली छां

मोचा: मोजा

साली छां मतवारी ओ राज
भंवर पटा पर वारी ओ राज
केसर की सी क्यारी ओ राज
लूंगां की सी बाड़ी ओ राज
माय बहन स प्यारी ओ राज
चावां लूंग सुपारी ओ राज
म्हें ईसर थारी साली छां

- लोक गीत

***

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आदेशों का दास नहीं है शाखा का आकार कभी,
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जिस पर पंछी घर कर लें वो ठाँव कहाँ से लाओगे?
बालकनी में बंध पाया क्या, बरगद का ..

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कौन तुम अरुणिम उषा-सी मन-गगन पर छा गयी हो!

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              मौन जीवन भर दिया मधु राग से,
              दे दिया संसार सोने का सहज
              जो मिला करता बड़े ही भाग से,
कौन तुम मधुमास-सी अमराइयाँ महका गयी हो!

             वीथियाँ सूने हृदय की ..

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