अप्रतिम कविताएँ
स्वप्न के गलियारे में
हैं सत्य ये नयन जब
होगा स्वप्न अस्तित्व भी
स्वप्न के गलियारे में
उन्नत आकाश होता है

ऊसर धरा में अंकुर जैसे
दमक चमक जाते हैं ये
स्वप्न के गलियारे में
कितना उल्लास होता है

अचानक उड़ जाते हैं पखेरू
मेरी सामर्थ्य से कहीं दूर
स्वप्न के गलियारे में
निरर्थक प्रयास होता है

होगे यें भी सत्य ही
तुम्हारे कहे शब्द कदाचित
स्वप्न के गलियारे में
मरीचिका आभास होता है

ना जाने कैसे क्यूँ
ये भूल गया था मैं
स्वप्न के गलियारे में
घोर कुहास होता है

परंतु आज नवस्वप्न लेकर
मैं फिर निकल पड़ा हूँ
स्वप्न के गलियारे में
जहां मंद प्रकाश होता है
- विकास अग्रवाल
Vikas Agarwal
Email: [email protected]
Vikas Agarwal
Email:
[email protected]

***
सहयोग दें
विज्ञापनों के विकर्षण से मुक्त, काव्य के सौन्दर्य और सुकून का शान्तिदायक घर... काव्यालय ऐसा बना रहे, इसके लिए सहयोग दे।

₹ 500
₹ 250
अन्य राशि
इस महीने :
'तोड़ती पत्थर'
सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'


वह तोड़ती पत्थर;
देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर—
वह तोड़ती पत्थर।

कोई न छायादार
पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार;
श्याम तन, भर बँधा यौवन,
नत नयन प्रिय, कर्म-रत मन,
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'एक अदद तारा मिल जाये'
सत्येन्द्र कुमार रघुवंशी


एक अदद तारा मिल जाये
तो इस नीम अँधेरे में भी
तुमको लम्बा ख़त लिख डालूँ।

छोटे ख़त में आ न सकेंगी
पीड़ा की पर्वतमालाएँ
और छटपटाहट की नदियाँ।
पता नहीं क्या वक़्त हुआ है,
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
संग्रह से कोई भी रचना | काव्य विभाग: शिलाधार युगवाणी नव-कुसुम काव्य-सेतु | प्रतिध्वनि | काव्य लेख
सम्पर्क करें | हमारा परिचय
सहयोग दें

a  MANASKRITI  website