अप्रतिम कविताएँ
निछावर तुम पर
मैं दीपशिखा सी जलूं तुम्हारे पथ पर।
मेरा सारा संसार निछावर तुम पर।

मेरी आशा, अभिलाषाओं के उद्गम।
मेरे सुहाग, मेरे सिंगार के संगम।

मेरे अतीत, मेरे भविष्य के दर्पण।
मेरा सतीत्व, नारीत्व तुम्ही को अर्पण।

अपना व्याकुल कौमार्य्य संभाले लाई।
अतिशय पीड़ा का भार उठाये आई।

स्वीकार करो ये युगों युगों से संचित।
मेरी पूजा के पुष्प तुम्ही को अर्चित।

मेरे अपेक्ष्य, आराध्य देव सर्वोपर,
तुम सूर्य सरीखे सजो निरन्तर नभ पर।

मैं दीपशिखा सी जलूं तुम्हारे पथ पर।
मधु का सारा माधुर्य्य निछावर तुम पर।
- मधु
दीपशिखा : दीपक की लौ; उद्गम : उत्पत्ति का स्थान; सूर्य सरीखे : सूर्य के समान
विषय:
प्रेम (60)

काव्यालय पर प्रकाशित: 3 Apr 2020

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इस महीने :
'नव ऊर्जा राग'
भावना सक्सैना


ना अब तलवारें, ना ढाल की बात है,
युद्ध स्मार्ट है, तकनीक की सौगात है।
ड्रोन गगन में, सिग्नल ज़मीन पर,
साइबर कमांड है अब सबसे ऊपर।

सुनो जवानों! ये डिजिटल रण है,
मस्तिष्क और मशीन का यह संगम है।
कोड हथियार है और डेटा ... ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'दरवाजे में बचा वन'
गजेन्द्र सिंह


भीगा बारिश में दरवाजा चौखट से कुछ झूल गया है।
कभी पेड़ था, ये दरवाजा सत्य ये शायद भूल गया है।

नये-नये पद चिन्ह नापता खड़ा हुआ है सहमा-सहमा।
कभी बना था पेड़ सुहाना धूप-छाँव पा लमहा-लमहा।
चौखट में अब जड़ा हुआ है एक जगह पर खड़ा हुआ है,
कभी ठिकाना था विहगों का आज ...

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