हैप्पी बड्डे गाँधी ब्रो
कोई कहता ऐसे हो
कोई कहता वैसे हो
ये सब छोड़ो और बताओ
स्वर्गलोक में कैसे हो
"सब जन एक बराबर" सुनकर
भारत का दिल ऊब गया है
सत्य,अहिंसा वाला बिस्किट
गरम चाय में डूब गया है
जहाँ-जहाँ तुम रहते,उजड़े
वे सब अड्डे गाँधी ब्रो।
दो का दूना पाँच रहे हैं
अनपढ़ कॉपी जाँच रहे हैं
जिनने तुम को पढ़ा नहीं है
तुमको गाली बाँच रहे हैं
ख़ुद कर के ख़ुद झेल रहे हैं
इक-दूजे को पेल रहे हैं
डूड तुम्हारे तीनों बंदर
छुपम-छुपाई खेल रहे हैं
दिन भर ज्ञान बाँटते रहते
महा कुबड्डे, गाँधी ब्रो।
हैप्पी बड्डे गाँधी ब्रो।
बड्डे: birthday, जन्मदिवस; ब्रो: bro, दोस्त, यार; डूड: dude, लड़के या पुरुष के लिए अनौपचारिक सम्बोधन
काव्यालय को प्राप्त: 13 Aug 2022.
काव्यालय पर प्रकाशित: 30 Sep 2022
इस महीने :
'हमारी सहयात्रा'
ज्योत्सना मिश्रा
कभी-कभी जीवन कोई घोषणा नहीं करता—
वह बस बहता है,
जैसे कोई पुराना राग,
धीरे-धीरे आत्मा में उतरता हुआ,
बिना शोर, बिना आग्रह।
हमारे साथ के तीस वर्ष पूर्ण हुए हैं।
कभी लगता है हमने समय को जिया,
कभी लगता है समय ने हमें तराशा।
यह साथ केवल वर्ष नहीं थे—
यह दो आत्माओं का मौन संवाद था,
जो शब्दों से परे,
पर भावों से भरपूर रहा।
जब हमने साथ चलना शुरू किया,
तुम थे स्वप्नद्रष्टा—
शब्दों के जादूगर,
भविष्य के रंगीन रेखाचित्रों में डूबे हुए।
और मैं…
मैं थी वह ज़मीन
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