एक कवि का अंतर्द्वंद्व
वह बहुत उदास-सी शाम थी
जब मैं उस स्त्री से मिला
मैंने कहा - मैं तुमसे प्रेम करता हूँ
फिर सोचा - यह कहना कितना नाकाफ़ी है
वह स्त्री एक वृक्ष में बदल गई
फिर पहाड़ में
फिर नदी में
धरती तो वह पहले से थी ही
मैं उस स्त्री का बदलना देखता रहा !
एक साथ इतनी चीज़ों से
प्रेम कर पाना कितना कठिन है
कितना कठिन है
एक कवि का जीवन जीना
वह प्रेम करना चाहता है
एक साथ कई चीज़ों से
और चीज़ें हैं कि बदल जाती हैं
प्रत्येक क्षण में !
काव्यालय को प्राप्त: 2 Aug 2021.
काव्यालय पर प्रकाशित: 17 Sep 2021
इस महीने :
'हमारी सहयात्रा'
ज्योत्सना मिश्रा
कभी-कभी जीवन कोई घोषणा नहीं करता—
वह बस बहता है,
जैसे कोई पुराना राग,
धीरे-धीरे आत्मा में उतरता हुआ,
बिना शोर, बिना आग्रह।
हमारे साथ के तीस वर्ष पूर्ण हुए हैं।
कभी लगता है हमने समय को जिया,
कभी लगता है समय ने हमें तराशा।
यह साथ केवल वर्ष नहीं थे—
यह दो आत्माओं का मौन संवाद था,
जो शब्दों से परे,
पर भावों से भरपूर रहा।
जब हमने साथ चलना शुरू किया,
तुम थे स्वप्नद्रष्टा—
शब्दों के जादूगर,
भविष्य के रंगीन रेखाचित्रों में डूबे हुए।
और मैं…
मैं थी वह ज़मीन
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