अप्रतिम कविताएँ
अपराजिता
शांति छिन्न भिन्न हो,
हृदय भले खिन्न हो,
जीवन के अँधेरे-उजास में,
असफल प्रयास में,
आस पराजित नहीं है,
और अपराजिता हूँ मैं |

संबंधों के विच्छेद से,
आस्था के भेद से,
श्वास के विराम से,
अवांछित आयाम से,
स्नेह पराजित नहीं है,
और अपराजिता हूँ मैं |

प्रेम नहीं, द्वेष हो,
विश्व भर में क्लेश हो,
सौभाग्य न हो, अभाग हो,
ध्वनित करुण राग हो,
साहस पराजित नहीं है,
और अपराजिता हूँ मैं |

अग्नि, जल वायु से,
नित बढ़ती आयु से,
पञ्च तत्व भूत से,
आत्मा के सूत्र से,
परिभाषित है मेरा तन,
किन्तु अपरिभाषित रही हूँ मैं -
हाँ, पराजित नहीं हूँ मैं |
- शैली चतुर्वेदी
Shaily Chaturvedi
Email: [email protected]
Shaily Chaturvedi
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इस महीने :
'काल का वार्षिक विलास'
नाथूराम शर्मा 'शंकर'


सविता के सब ओर मही माता चकराती है,
घूम-घूम दिन, रात, महीना वर्ष मनाती है,
कल्प लों अन्त न आता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन जाता है।

छोड़ छदन प्राचीन, नये दल वृक्षों ने धारे,
देख विनाश, विकाश, रूप, रूपक न्यारे-न्यारे,
दुरङ्गी चैत दिखाता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन
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पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'ओ माँ बयार'
शान्ति मेहरोत्रा


सूरज को, कच्ची नींद से
जगाओ मत।
दूध-मुँहे बालक-सा
दिन भर झुंझलायेगा
मचलेगा, अलसायेगा
रो कर, चिल्ला कर,
घर सिर पर उठायेगा।
आदत बुरी है यह
..

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इस महीने :
'आए दिन अलावों के'
इन्दिरा किसलय


आए दिन
जलते हुए, अलावों के !!

सलोनी सांझ
मखमली अंधेरा
थमा हुआ शोर
हर ओर
जी उठे दृश्य
मनोरम गांवों के !!

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