अप्रतिम कविताएँ
आसान रास्ते
आसान रास्ते कोई और चुने
उनपर कोई और चले।
मुझे चाहिए वह रास्ता जिसमें
काँटें हों, कंकर और पत्थर हों
जो भयानक जँगलों से गुज़रे -
उस पार कोई ऐसा सूरज है
कोई ऐसी दुनिया है
जो किसी ने नहीं देखी है।
शायद मैं मर जाऊँ,
घायल हो कर गिर जाऊँ।
तो क्या?
- विक्रम मुरारका
Vikram Murarka
Email : [email protected]
विषय:
संकल्प (14)

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'हादसे के बाद की दीपावली'
गीता दूबे


रौशनी से नहाए इस शहर में
खुशियों की लड़ियाँ जगमगाती हैं
चीर कर गमों के अँधेरे को
जिंदगी आज फिर से मुस्कराती है।

धमाका फिर गूंजता है
पर बमों और बंदूकों का नहीं
पटाखों के साथ-साथ
गूंजती है किलकारियाँ भी।
सहमे से मुरझाए होठों पर
..

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