चिट्ठी सी शाम
एक और चिट्ठी सी शाम
डूब गयी सूरज के नाम।
जाड़े की धूप और
कुहरे की भाषा
कोने में टँगी हुई
गहरी अभिलाषा
आसमान के हाथों
चाँदी का गुच्छा
ताल में खिली जैसे
फिर कोई इच्छा
छत से ऊपर उठते
धुएँ के कलाम
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सुरेन्द्र काले
Poet's Address: Nawab Cottage, Purdilpur, Gorakhpur
Ref: Naye Purane, September,1998
इस महीने :
'दरवाजे में बचा वन'
गजेन्द्र सिंह
भीगा बारिश में दरवाजा चौखट से कुछ झूल गया है।
कभी पेड़ था, ये दरवाजा सत्य ये शायद भूल गया है।
नये-नये पद चिन्ह नापता खड़ा हुआ है सहमा-सहमा।
कभी बना था पेड़ सुहाना धूप-छाँव पा लमहा-लमहा।
चौखट में अब जड़ा हुआ है एक जगह पर खड़ा हुआ है,
कभी ठिकाना था विहगों का आज ...
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