अप्रतिम कविताएँ
चिट्ठी सी शाम
एक और चिट्ठी सी शाम
डूब गयी सूरज के नाम।

जाड़े की धूप और
कुहरे की भाषा

कोने में टँगी हुई
गहरी अभिलाषा

आसमान के हाथों
चाँदी का गुच्छा

ताल में खिली जैसे
फिर कोई इच्छा

छत से ऊपर उठते
धुएँ के कलाम
- सुरेन्द्र काले
Poet's Address: Nawab Cottage, Purdilpur, Gorakhpur
Ref: Naye Purane, September,1998

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'बेकली महसूस हो तो'
विनोद तिवारी

बेकली महसूस हो तो गुनगुना कर देखिये।
दर्द जब हद से बढ़े तब मुस्कुरा कर देखिये।

रूठते हैं लोग बस मनुहार पाने के लिए
लौट आएगा, उसे फिर से बुला कर देखिये।

आपकी ही याद में शायद वह हो खोया हुआ
पास ही होगा कहीं, आवाज़ देकर देखिये।

हारती है बस मोहब्बत ही ख़ुदी के खेल में
हार कर अपनी ख़ुदी, उसको...

पूरी ग़ज़ल यहां पढ़ें
इस महीने :
'पुकार'
अनिता निहलानी


कोई कथा अनकही न रहे
व्यथा कोई अनसुनी न रहे,
जिसने कहना-सुनना चाहा
वाणी उसकी मुखर हो रहे!

एक प्रश्न जो सोया भीतर
एक जश्न भी खोया भीतर,
जिसने उसे जगाना चाहा
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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