अप्रतिम कविताएँ
भोर का पाहुन
भोर का पाहुन दुआरे पर-
भोर वनगंधी हवाओं से किरन के फूल उतरे,
और मेरी देहरी पर कुछ अबोले शब्द बन बिखरे ।
उठो मेरी पद्मगन्धिनि उठो,
चन्दन बांह पर फैले सिवारी आबवाले,
मोरपंखी घन संभालो,
मौन अधरों पर लगी पाबंदियां अपनी उठा लो ।
अभी ठहरा हुआ है भोर का पाहुन दुआरे पर,
अभी ठहरा हुआ है बांसुरी का स्वर किनारे पर ।
उठो इस देहरी के फूल से वेणी संवारूंगा,
अनागत का सजल वरदान पलकों पर उतारूंगा ।
कि कल कोई न यह कह दे-
तुम्हारे द्वार पर उतरा हुआ जो
भोर का पाहुन अनादृत था ।
- रमानाथ शर्मा
Ramanath Sharma
Email: [email protected]
Ramanath Sharma
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छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 1 लय का महत्व

वाणी मुरारका
इस महीने :
'कामायनी ('निर्वेद' सर्ग के कुछ छंद)'
जयशंकर प्रसाद


तुमुल कोलाहल कलह में
मैं हृदय की बात रे मन!

विकल होकर नित्य चंचल,
खोजती जब नींद के पल,
चेतना थक-सी रही तब,
मैं मलय की वात रे मन!

चिर-विषाद-विलीन मन की,
इस व्यथा के तिमिर-वन की;
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
'बेकली महसूस हो तो'
विनोद तिवारी

बेकली महसूस हो तो गुनगुना कर देखिये।
दर्द जब हद से बढ़े तब मुस्कुरा कर देखिये।

रूठते हैं लोग बस मनुहार पाने के लिए
लौट आएगा, उसे फिर से बुला कर देखिये।

आपकी ही याद में शायद वह हो खोया हुआ
पास ही होगा कहीं, आवाज़ देकर देखिये।

हारती है बस मोहब्बत ही ख़ुदी के खेल में
हार कर अपनी ख़ुदी, उसको...

पूरी ग़ज़ल यहां पढ़ें
इस महीने :
'पुकार'
अनिता निहलानी


कोई कथा अनकही न रहे
व्यथा कोई अनसुनी न रहे,
जिसने कहना-सुनना चाहा
वाणी उसकी मुखर हो रहे!

एक प्रश्न जो सोया भीतर
एक जश्न भी खोया भीतर,
जिसने उसे जगाना चाहा
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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