अप्रतिम कविताएँ
एक भी आँसू न कर बेकार
एक भी आँसू न कर बेकार -
जाने कब समंदर मांगने आ जाए!
           पास प्यासे के कुआँ आता नहीं है,
           यह कहावत है, अमरवाणी नहीं है,
           और जिस के पास देने को न कुछ भी
           एक भी ऐसा यहाँ प्राणी नहीं है,
कर स्वयं हर गीत का श्रृंगार
जाने देवता को कौनसा भा जाय!
           चोट खाकर टूटते हैं सिर्फ दर्पण
           किन्तु आकृतियाँ कभी टूटी नहीं हैं,
           आदमी से रूठ जाता है सभी कुछ -
           पर समस्यायें कभी रूठी नहीं हैं,
हर छलकते अश्रु को कर प्यार -
जाने आत्मा को कौन सा नहला जाय!
           व्यर्थ है करना खुशामद रास्तों की,
           काम अपने पाँव ही आते सफर में,
           वह न ईश्वर के उठाए भी उठेगा -
           जो स्वयं गिर जाय अपनी ही नज़र में,
हर लहर का कर प्रणय स्वीकार -
जाने कौन तट के पास पहुँचा जाए!
- रामावतार त्यागी
विषय:
जीवन (37)
आशा विश्वास (18)

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इस महीने :
'छाता '
प्रेमरंजन अनिमेष


जिनके सिर ढँकने के लिए
छतें होती हैं
वही रखते हैं छाते

हर बार सोचता हूँ
एक छत का जुगाड़ करुँगा
और लूँगा एक छाता

इस शहर के लोगों के पास
जो छाता है
उसमें

..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'एक मनःस्थिति '
शान्ति मेहरोत्रा


कभी-कभी लगता है
जैसे घर की पक्की छत, दीवारें, चौखटें
मेरी गरम साँसों से पिघल कर
मोम-सी बह गई हैं।

केवल ये खिड़कियाँ-दरवाजे जैसे
कभी ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'खिलौने की चाबी'
नूपुर अशोक


इतनी बार भरी गई है
दुःख, तकलीफ और त्याग की चाबी
कि माँ बन चुकी है एक खिलौना
घूम रही है गोल-गोल
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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