अप्रतिम कविताएँ
एक भी आँसू न कर बेकार
एक भी आँसू न कर बेकार -
जाने कब समंदर मांगने आ जाए!
           पास प्यासे के कुआँ आता नहीं है,
           यह कहावत है, अमरवाणी नहीं है,
           और जिस के पास देने को न कुछ भी
           एक भी ऐसा यहाँ प्राणी नहीं है,
कर स्वयं हर गीत का श्रृंगार
जाने देवता को कौनसा भा जाय!
           चोट खाकर टूटते हैं सिर्फ दर्पण
           किन्तु आकृतियाँ कभी टूटी नहीं हैं,
           आदमी से रूठ जाता है सभी कुछ -
           पर समस्यायें कभी रूठी नहीं हैं,
हर छलकते अश्रु को कर प्यार -
जाने आत्मा को कौन सा नहला जाय!
           व्यर्थ है करना खुशामद रास्तों की,
           काम अपने पाँव ही आते सफर में,
           वह न ईश्वर के उठाए भी उठेगा -
           जो स्वयं गिर जाय अपनी ही नज़र में,
हर लहर का कर प्रणय स्वीकार -
जाने कौन तट के पास पहुँचा जाए!
- रामावतार त्यागी

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इस महीने :
'पावस गीत'
प्रभात कुमार त्यागी


पुल बारिश का!
बिना ओढ़नी हवा घूमती
सबने देखा
पुल बारिश का!

मेघों से धरती तक
धानखेती सीढ़ियाँ,
मिट्टी में उग रहीं
नई हरी पीढ़ियाँ,
उड़ती हुई नदी पर
बनती मिटती नौका,
पुल बारिश का!
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...

डूब कर देखो ये है गंगा गणित विज्ञान की।
ये परम आनंद है वाणी स्वयं भगवान की।

~ विनोद तिवारी

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