अप्रतिम कविताएँ
आज बरसों बाद
आज बरसों बाद
जैसे अपने शहर में लौटा हूँ,
गली के सूखे पेड़ पर नई कोंपल को फूटे देखा,
सन्ध्या के हाथों को फिर से रवि को छूते देखा,
धड कन में तेजी पाता हूँ जैसे,
आज बरसों बाद ।
आज बरसों बाद
जैसे पत्तों की रूकी हुई साँस,
सर्र र से उच्छवास बन कर निकल रही है,
जल तल पर फिर से चाँदनी फिसल रही है,
नयनों में जल पाता हूँ जैसे,
आज बरसों बाद ।
आज बरसों बाद,
जैसे चाँद की धुदंली आँख को
बरखा ने अपनी फुहारों से धो डाला है,
मेरी खिड की से फिर झाँक रहा उजाला है,
पवनों में रूनझुन पाता हूँ जैसे,
आज बरसों बाद ।

आज बरसों बाद,
जैसे सैनिक युद्ध से लौटा है,
पीपल तले झूल रही सुहागिन सावन का झूला,
लहराते केशों को देख घन भी बरसना भूला,
दिल में बारूद सा पाता हूँ जैसे,
आज बरसों बाद ।
- राजेश 'पंकज'
Rajesh 'Pankaj'
Email: [email protected]
Rajesh 'Pankaj'
Email: [email protected]

काव्यालय पर प्रकाशित: 2 May 2011

***
सहयोग दें
विज्ञापनों के विकर्षण से मुक्त, काव्य के सौन्दर्य और सुकून का शान्तिदायक घर... काव्यालय ऐसा बना रहे, इसके लिए सहयोग दे।

₹ 500
₹ 250
अन्य राशि
इस महीने :
'काल का वार्षिक विलास'
नाथूराम शर्मा 'शंकर'


सविता के सब ओर मही माता चकराती है,
घूम-घूम दिन, रात, महीना वर्ष मनाती है,
कल्प लों अन्त न आता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन जाता है।

छोड़ छदन प्राचीन, नये दल वृक्षों ने धारे,
देख विनाश, विकाश, रूप, रूपक न्यारे-न्यारे,
दुरङ्गी चैत दिखाता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'ओ माँ बयार'
शान्ति मेहरोत्रा


सूरज को, कच्ची नींद से
जगाओ मत।
दूध-मुँहे बालक-सा
दिन भर झुंझलायेगा
मचलेगा, अलसायेगा
रो कर, चिल्ला कर,
घर सिर पर उठायेगा।
आदत बुरी है यह
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'आए दिन अलावों के'
इन्दिरा किसलय


आए दिन
जलते हुए, अलावों के !!

सलोनी सांझ
मखमली अंधेरा
थमा हुआ शोर
हर ओर
जी उठे दृश्य
मनोरम गांवों के !!

..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
संग्रह से कोई भी रचना | काव्य विभाग: शिलाधार युगवाणी नव-कुसुम काव्य-सेतु | प्रतिध्वनि | काव्य लेख
सम्पर्क करें | हमारा परिचय
सहयोग दें

a  MANASKRITI  website