पेड़ नहीं हैं, उठी हुई
धरती की बाहें हैं
तेरे मेरे लिए माँगती
रोज दुआएँ हैं।
पेड़ नहीं हैं ये धरती की
खुली निगाहें हैं
तेरे मेरे लिए निरापद
करती राहे हैं।
पेड़ नहीं ये पनपी धरती
गाहे गाहे हैं
तेरे मेरे जी लेने की
विविध विधाएँ हैं।
पेड़ नहीं ये धरती ने
यत्न जुटाए हैं
तेरे मेरे लिऐ खुशी के
रत्न लुटाये हैं।
पेड़ नहीं ये धरती ने
चित्र बनाए हैं
तेरे मेरे लिए अनेकों
मित्र जुटाए हैं।
पेड़ नहीं ये धरती ने
चँवर डुलाए हैं।
तेरे मेरे लिऐ छाँह के
गगन छवाए हैं।
पेड़ नहीं ये धरती ने
अलख जगाए हैं
तेरे मेरे 'ढूँढ' के
जतन जताए हैं।
पेड़ नहीं है अस्तित्वों के
बीज बिजाए हैं
तेरे मेरे जीने के
विश्वास जुड़ाए हैं।