1932-2018
सभी उन्हें बहनजी के नाम से जानते थे। उनका असली नाम था सूर्यकुमारी माहेश्वरी! यथा नाम, तथा गुण-- वह तेज, मेधा और अग्नि से परिपूर्ण थी! जीवन की तपिश ने चाहे उन्हें कितना भी पिघलाया, पर वह हमेशा सर उठा के जीयीं। बचपन अजमेर के भंडारा गली में भाई- बहन और रिश्तेदारों से भरे-पुरे परिवार में बीता। वकील पिता अपनी तार्किक बिटिया को प्यार से अपना बेटा कहते रहे। दसवीं पास करने के बाद उनकी शादी हो गई, जो खास नहीं चली। अजमेर में अपने मायके लौटने के बाद उन्होंने आगे पढ़ाई की। हिंदी और हिंदी साहित्य में डबल एम.ए. किया। वे हिंदी विशारद थीं। अध्यापन में रूचि रखते हुए उन्होंने बी.एड., एम.एड. भी किया और नसीराबाद में पढ़ना शुरू किया। उन्होंने वनस्थली में भी कुछ समय पढ़ाया और अपने कार्यकाल के अंत में वह रीजनल कॉलेज अजमेर से जुड़े हुए 'डेमोंस्ट्रेशन मल्टीपर्पस हॉयर सेकेंडरी स्कूल -अजमेर' में सेवारत थीं। एन.सी.ई.आर.टी. में हिंदी के पाठ्यक्रम के विकास में उनका बड़ा योगदान रहा।
वह हमेशा से प्रगतिशील और क्रांतिकारी विचारों की महिला रहीं। अजमेर के महिला मंडल से आजीवन जुड़ी रहीं और उन्होंने गुलाबदेवी आर्यपुत्री ट्रस्ट की अध्यक्षा पद का कार्यभार भी संभाला। वह अपने ज़माने की प्रखर वक्ता और महिला सशक्तिकरण की प्रणेता थीं। जीवनपर्यन्त उनकी संवेदना उनकी मेधा पर हावी रही। दूसरों के दु:ख दर्द को अपना मानते हुए वे द्रवित हो जातीं और मदद को निकल पढ़तीं।
पठन एवं लेखन में सदैव रूचि रखने वाली बहनजी ने बहुत सी कविताएँ, लेख और कहानियाँ लिखीं जो समय-समय पर पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहीं। उनका लेखन धरोहर के रूप में उनकी पुत्रवधु शार्दुला नोगजा के पास सुरक्षित है और अन्य जानकारी के लिए उनका संपर्क है :
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