यद्यपि कृष्ण मुरारी पहारिया की कई उत्कृष्ट कविताएं विभिन्न पोर्टलों पर उपलब्ध हैं लेकिन उनके विषय में विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है।
'अनुभूति' साहित्यिक पोर्टल से पता चलता है कि बाँदा निवासी कृष्ण मुरारी पहारिया रेलडाक व्यवस्था के विगलक(डिस्पैचर) पद पर तैनात रहे। वो सूर, कबीर और निराला को अपने पुरखे मानते थे, वो मानते थे कि इन्हीं पुरखों से उन्होंने विरासत में बहुत कुछ पाया।
सादगी से भरे इस रचनाकार की एक कृति ‘यह कैसी दुर्धर्ष चेतना’ 1998 में उरई (जालौन) के सहयोगियों से प्रकाशित हो सकी। आज वे इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन आज भी लगभग ४०० अप्रकाशित गीत उनकी हस्त लिखित डायरी में प्रकाशित होने की प्रतीक्षा में हैं।