समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न
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भाग 2 | 56
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उन्वान – शीर्षक;
28. एक शिकवा है यह ज़माने से
एक शिकवा है यह ज़माने से
लोग डरते हैं मुस्कराने से।

सिर्फ उन्वान सा भटकता हूँ
छूट कर वक़्त के फ़साने से।

एक उम्मीद टूटती ही नहीं
ज़िन्दगी है इसी बहाने से।

लौट आयेंगे आसमानों से
प्यार इतना है आशियाने से।

आ गई रास ज़िन्दगी मुझको
तेरी दुनिया में आने जाने से।

कुछ भरोसा तो है उजालों पर
शमा जल जाती है जलाने से।

इम्तिहाँ और हैं तो और सही
मैं चमकता हूँ आज़माने से।

रास्ते पाँव थाम लेते हैं
मंज़िलों के करीब आने से।

बेकली है मगर घड़ी भर की
सो ही जाऊँगा नींद आने से।

यादगारों से नज़्म बनती है
दर्द घटता है गुनगुनाने से।

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