27. मैंने जब जब तुम्हे बुलाया है
मैंने जब जब तुम्हे बुलाया है
तुमको अपने करीब पाया है।
अपनी पलकों में इसको पलने दो
यह जो नाज़ुक सा ख़्वाब आया है।
लौट आई है रात की रूठी
सुबह को शाम ने मनाया है।
मंज़िलें दूर होती जाती हैं
रास्ता किसको रास आया है।
जाते जाते जरा सा हँस करके
तुमने बेसाख़ता रुलाया है।
वक्त अब तो बदल ही जायेगा,
कल जो बीता था, आज आया है।
जिन्दगी इस तरह गुज़ारी है
जब भी टूटे हैं, मुस्कुराया है।
मेरे जज़बात, मेरी तनहाई
और जो भी है, वह पराया है।
वह बहारों की इक कहानी है
मेरी नज़्मों पे जिसका साया है।
तुमको अपने करीब पाया है।
अपनी पलकों में इसको पलने दो
यह जो नाज़ुक सा ख़्वाब आया है।
लौट आई है रात की रूठी
सुबह को शाम ने मनाया है।
मंज़िलें दूर होती जाती हैं
रास्ता किसको रास आया है।
जाते जाते जरा सा हँस करके
तुमने बेसाख़ता रुलाया है।
वक्त अब तो बदल ही जायेगा,
कल जो बीता था, आज आया है।
जिन्दगी इस तरह गुज़ारी है
जब भी टूटे हैं, मुस्कुराया है।
मेरे जज़बात, मेरी तनहाई
और जो भी है, वह पराया है।
वह बहारों की इक कहानी है
मेरी नज़्मों पे जिसका साया है।
*