समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न
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भाग 1 | 32
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बंधक – बधा हुआ, गिरवी; इसरारों – आग्रहों
15. मेरे मधुवन
दूर क्षितिज के पीछे से फिर, तुमने मुझको आज पुकारा।
तुमको खो कर भी मैंने सँजो रखा है प्यार तुम्हारा।

एक सफ़ेद रात की छाया, अंकित है स्मृति में मेरी।
तारों का सिंगार सजाए, मधुऋतु थी बाहों में मेरी।

संगमरमरी चट्टानों के, बीच बह रही वह जलधारा।
जैसे चंदा के आंचल से, ढुलक रहा हो रूप तुम्हारा।

नदिया की चंचल लहरों संग, मचल मचल कर उठती गिरती।
हम दोनों के अरमानों की, बहती थी कागज़ की किश्ती।

छूकर बिखरे बाल तुम्हारे, मस्त हो गया था बयार भी।
सारी मर्यादाएं भूला, मेरा पहला पहल प्यार भी।

और तुम्हारे अधरों का तो ताप न भूलेगा जीवन भर।
जब मेरे क्वाँरे सपनों ने उड़ उड़ कर चूमा था अंबर।

तभी अचानक हम दोनों की राह रोक ली चट्टानों ने।
अपनी कागज की किश्ती को डूबो दिया कुछ तूफानों ने।

इन मासूम तमन्नाओं पर तब यथार्थ की बिजली चमकी।
और छलछला उठीं तुम्हारी आँखों में बूंदें शबनम की।

उस शबनम की एक बूँद, अब मेरी आँखों में रहती है।
मूक व्यथा अनकही कथा की, मेरे गीतों में सजती है।

रूढिवादिता के अंकुश में, युगों युगों से जकड़ा जीवन।
दकियानूसी वैचारिकता, में कुंठित है मानव का मन।

जाने कितनी और किश्तियाँ, डूबी होंगी तूफानों में।
कितनी राहों की आकांक्षा, टूटी होंगी चट्टानों में ।

नहीं झुकेंगी ये चट्टानें, विनती से या मनुहारों से।
राह नहीं देते हैं पर्वत, खुशामदों से इसरारों से।

पतझर के बंधन में बंधक, मधुऋतु के कितने सुख सपने।
राह पतझरी, मरुस्थली पर, कोई कली न पाती खिलने।

किन्तु एक दिन तो बरसेगा, आँगन में मनभावन सावन।
पुष्पित और पल्लवित होगा, सुन्दर सुख सपनो का मधुवन।

चलो समय के साथ चलेंगे, परिवर्तन होगा धरती पर।
नया ज़माना पैदा होगा, बूढ़ी दुनिया की अरथी पर।

जो कुछ हम पर बीत चुकी है, उस से मुक्त रहो, ओ नवयुग।
नए नए फूलों से महको, मेरे मधुवन, जीयो जुग जुग।

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