समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न
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भाग 1 | 31
मुक्तक

कैसे स्वप्न उभर आए हैं
मेरी इन जागृत आँखों में।
आज मुझे लगता है, सारी
दुनिया मुझे प्यार करती है।

*

भीड़ में खोई हुई तनहाइयाँ।
रात में भटकी हुई परछाइयाँ।
ढूँढते हैं अब नए आकाश को
शून्य में बहती हुई ऊँचाइयाँ।

*