मुक्तक
कैसे स्वप्न उभर आए हैं
मेरी इन जागृत आँखों में।
आज मुझे लगता है, सारी
दुनिया मुझे प्यार करती है।
कैसे स्वप्न उभर आए हैं
मेरी इन जागृत आँखों में।
आज मुझे लगता है, सारी
दुनिया मुझे प्यार करती है।
*
भीड़ में खोई हुई तनहाइयाँ।
रात में भटकी हुई परछाइयाँ।
ढूँढते हैं अब नए आकाश को
शून्य में बहती हुई ऊँचाइयाँ।
रात में भटकी हुई परछाइयाँ।
ढूँढते हैं अब नए आकाश को
शून्य में बहती हुई ऊँचाइयाँ।
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