समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न
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भाग 1 | 23
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मद्धम – कम; क्लांत – थका हुई; कुंठित – अटकी हुई; आग़ाज़ - प्रारम्भ; कथानक - कहानी का सारांश;
8. बिखरते नाते
आज मैं कितना अकेला, ज़िन्दगी के मोड़ पर।
प्यार का नाता हमारा, चल दिए तुम तोड़ कर।

बुझ गयी हैं दीपिकाएं, ज्योत्सना की ज्योति मद्धम।
चाँद कुम्हलाया गगन में, तारिकाओं के नयन नम।
सूर्य की दुलहन चली किसकी चुनरिया ओढ़ कर।
प्यार का नाता हमारा, चल दिए तुम तोड़ कर।

क्लांत कुंठित कामनायें, विरहिणी व्याकुल अकेली।
समय की गहराइयों में खो गयी आशा नवेली।
तोड़ देता है समय, सम्बन्ध कितने जोड़ कर।
प्यार का नाता हमारा, चल दिए तुम तोड़ कर।

संग छूटा, साथ टूटा, साथ का विश्वास टूटा।
प्यार की अभिव्यक्ति मिथ्या, रूह का एहसास झूठा।
गाँठ लग सकती नहीं, झूठे दिलों की डोर पर।
प्यार का नाता हमारा, चल दिए तुम तोड़ कर।

ज़िन्दगी तनहाइयों में सिमट कर खो जायेगी।
यह सुबह भी रात के आगोश में सो जायेगी।
अंत का आरम्भ है, प्रारम्भ के इस छोर पर।
प्यार का नाता हमारा, चल दिए तुम तोड़ कर।

जो कभी हमने लिखी थी वक़्त के आग़ाज़ में।
जो कभी तुमने कही थी कांपती आवाज़ में।
वह कथा अंजाम पर आयी कथानक छोड़ कर।
प्यार का नाता हमारा, चल दिए तुम तोड़ कर।

आज मैं कितना अकेला, ज़िन्दगी के मोड़ पर।
प्यार का नाता हमारा, चल दिए तुम तोड़ कर।

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