समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न
भाग 1
| 24
जीवन...परिभाष्य नहीं : जीवन परिभाषा के परे है
9. मुखौटे
What's there in a name! A rose by any other name will smell as good. ~ Shakespeare
शेक्सपियर ने कभी कहा था किसी नाम में क्या रखा है!
चाहे कुछ हो नाम, फूल तो वैसे ही महका करता है।
एक निरर्थक नाम न जाने क्यों मनुष्य से जुड़ जाता है।
और उसी बंधन में सीमित हर व्यक्तित्व जकड़ जाता है।
इसीलिये तो चिता जला दी मैंने आज नाम की अपने।
और साथ में भस्म कर दिये झूठमूठ के सुन्दर सपने।
एक नाम नीरस साधारण, कहीं धूल में बिखर गया है।
अब उसका क्या शोक मनाना, एक बोझ था उतर गया है।
फिर भी मन की गहराई में एक चुभन होती रहती है।
चिंगारी बुझ जाने पर भी राख सुलगती ही रहती है।
था तो केवल एक मुखौटा, फिर भी अपना सा लगता था।
एक झूठ था, फिर भी प्रिय था, जो भी था अच्छा लगता था।
झूठ अगर मीठा होता है तो कुछ सच्चा सा लगता है।
फिर मन का विश्वास उसी पर सच का रंग सजा देता है।
नन्हे मुन्ने शिशु सा कोमल, एक नाम, शब्दों में सीमित।
एक व्यथित व्यक्तित्व संभाले, स्मृतियों से बोझिल पीड़ित।
सीमित होकर भी असीम था, चिरपरिचित फिर भी रहस्यमय।
कोमल था लेकिन सशक्त था, अपराजित, अजेय, मृत्युंजय।
था प्रतीक मेरे अतीत का, मेरे वर्तमान का सम्बल।
जो मेरा अस्तित्व चिह्न था, संग संग चलता था प्रतिपल।
मैं नश्वर हूँ, नाम अनश्वर जो मेरा वरदान बन गया।
था तो केवल एक मुखौटा, पर मेरी पहचान बन गया।
नाम जल गया, स्वप्न जल गये एक और इतिहास जल गया।
एक मधुर अनुभूति मिट गयी, रूहानी एहसास जल गया।
धरती से मिट गया नाम, पर इन्द्र धनुष के पार रहेगा।
धरती नहीं, गगन पर उसको जीवन का आधार मिलेगा।
पर जीवन की क्या परिभाषा, सपनों में पलता रहता है।
बस भविष्य है जो अतीत के साँचे में ढलता रहता है।
जीवन अपनी परिभाषा है, परिभाषा का परिभाष्य नहीं।
इसका भविष्य है निराकार यदि सपनो में सामर्थ्य नहीं।
यदि इतिहास हो गया दूषित, तो भविष्य का रूप संवारो।
जो अतीत है वह मिथ्या है जो सम्मुख है उसे निहारो।
लेकिन यह सब तर्क वितर्की बातें हैं, बातों का क्या है।
स्वप्न सत्य हैं, सत्य मुखौटे, हर असत्य में सत्य छिपा है।
एक मुखौटा उतर गया है, एक मुखौटा लगा लिया है।
जाने क्या था असली चेहरा, अब तो सब कुछ भुला दिया है।
यह संसार मुखौटों का है, नित्य नया मुखड़ा बदलेगा।
जहां प्यार ही हो क्षणभंगुर, वहाँ कहाँ विश्वास पलेगा।
सबके मुख पर कई मुखौटे, सत्य रूप किसने देखा है।
शेक्सपियर ने ठीक लिखा था, भला नाम में क्या रखा है।
चाहे कुछ हो नाम, फूल तो वैसे ही महका करता है।
एक निरर्थक नाम न जाने क्यों मनुष्य से जुड़ जाता है।
और उसी बंधन में सीमित हर व्यक्तित्व जकड़ जाता है।
इसीलिये तो चिता जला दी मैंने आज नाम की अपने।
और साथ में भस्म कर दिये झूठमूठ के सुन्दर सपने।
एक नाम नीरस साधारण, कहीं धूल में बिखर गया है।
अब उसका क्या शोक मनाना, एक बोझ था उतर गया है।
फिर भी मन की गहराई में एक चुभन होती रहती है।
चिंगारी बुझ जाने पर भी राख सुलगती ही रहती है।
था तो केवल एक मुखौटा, फिर भी अपना सा लगता था।
एक झूठ था, फिर भी प्रिय था, जो भी था अच्छा लगता था।
झूठ अगर मीठा होता है तो कुछ सच्चा सा लगता है।
फिर मन का विश्वास उसी पर सच का रंग सजा देता है।
नन्हे मुन्ने शिशु सा कोमल, एक नाम, शब्दों में सीमित।
एक व्यथित व्यक्तित्व संभाले, स्मृतियों से बोझिल पीड़ित।
सीमित होकर भी असीम था, चिरपरिचित फिर भी रहस्यमय।
कोमल था लेकिन सशक्त था, अपराजित, अजेय, मृत्युंजय।
था प्रतीक मेरे अतीत का, मेरे वर्तमान का सम्बल।
जो मेरा अस्तित्व चिह्न था, संग संग चलता था प्रतिपल।
मैं नश्वर हूँ, नाम अनश्वर जो मेरा वरदान बन गया।
था तो केवल एक मुखौटा, पर मेरी पहचान बन गया।
नाम जल गया, स्वप्न जल गये एक और इतिहास जल गया।
एक मधुर अनुभूति मिट गयी, रूहानी एहसास जल गया।
धरती से मिट गया नाम, पर इन्द्र धनुष के पार रहेगा।
धरती नहीं, गगन पर उसको जीवन का आधार मिलेगा।
पर जीवन की क्या परिभाषा, सपनों में पलता रहता है।
बस भविष्य है जो अतीत के साँचे में ढलता रहता है।
जीवन अपनी परिभाषा है, परिभाषा का परिभाष्य नहीं।
इसका भविष्य है निराकार यदि सपनो में सामर्थ्य नहीं।
यदि इतिहास हो गया दूषित, तो भविष्य का रूप संवारो।
जो अतीत है वह मिथ्या है जो सम्मुख है उसे निहारो।
लेकिन यह सब तर्क वितर्की बातें हैं, बातों का क्या है।
स्वप्न सत्य हैं, सत्य मुखौटे, हर असत्य में सत्य छिपा है।
एक मुखौटा उतर गया है, एक मुखौटा लगा लिया है।
जाने क्या था असली चेहरा, अब तो सब कुछ भुला दिया है।
यह संसार मुखौटों का है, नित्य नया मुखड़ा बदलेगा।
जहां प्यार ही हो क्षणभंगुर, वहाँ कहाँ विश्वास पलेगा।
सबके मुख पर कई मुखौटे, सत्य रूप किसने देखा है।
शेक्सपियर ने ठीक लिखा था, भला नाम में क्या रखा है।
*