प्राक्कथन
इंद्रधनुष के उस पार अप्रतिम सौंदर्य की एक प्रतिमा है, जिससे मेरा युगों युगों का नाता है। उस छवि से माधुर्य की एक अविरल धारा बहती है, जिसका अनुभव मैं प्रतिपल करता हूँ। उसी अनुभूति की अभिव्यक्ति इन कविताओं में है। इनमें निहित भावनाओं का वर्णन मेरे शब्दों में है किन्तु उन्हें साकार रूप और कविताओं को पूर्णत्व दिया है वाणी मुरारका की चित्र कला ने।
इंद्रधनुष के एक ओर हमारा सत्य है और दूसरी ओर स्वप्न। सत्य और स्वप्न के बीच में कोई ज्यामितीय रेखा नहीं है। इनके बीच की सरहद बादल की तरह चलायमान है जिसके धुंधलके में सत्य और स्वप्न एक दूसरे को धीरे धीरे आत्मसात करते हैं। सत्य और स्वप्न के बीच का यह धुंधलका भौतिक संसार का एक यथार्थ है। जैसे क्वांटम भौतिकी में एक इलेक्ट्रान, कण और तरंग के बीच में, अपने द्विरूप और अपने दोहरे अस्तित्व की पहचान खोजता रहता है, वैसे ही सत्य और स्वप्न, एकरूप होकर, इन कविताओं में समाये हैं।
सत्य और स्वप्न सभी के अपने मन का दर्पण हैं । सभी का अपना अनोखा सत्य और अपना व्यक्तिगत स्वप्न होता है और उनका अनुभव सबका अपना निजी। जैसे गोस्वामी तुलसीदास के शब्दों में शिव के अनुभव की अभिव्यक्ति है “सत हरिभजन, जगत सब सपना”, या ग़ालिब का बयाँ उनके अशआर में है “आते हैं ग़ैब से ये मजामे ख़याल में”, या फिर साहिर लुधियानवी का तसव्वुर, जो राज़ तो है किन्तु, उन्ही के शब्दों में, “हमारा राज़ हमारा नहीं सभी का है, चलो कि सारे ज़माने को राज़दाँ कर लें।” ये कवितायें भी सत्य और स्वप्न की सरहद पर सारे ज़माने को हमारा राज़दाँ कर लेती हैं।
यह पुस्तक काव्यालय से प्रकाशित हुई, यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। काव्यालय हिंदी जगत की एक अद्वितीय संस्था है। कितने ही जाने अनजाने कवियों को हिंदी प्रेमियों के सम्मुख, बिना किसी आर्थिक लाभ के, प्रस्तुत करने का श्रेय काव्यालय को है। काव्यालय में उपलब्ध, वाणी मुरारका द्वारा रचित, एक सॉफ्टवेयर “गीत गतिरूप”, कविताओं में मात्राओं की गणना और शब्द - संयोजन के लिए अत्यंत उपयोगी है । मैं इसका निरंतर उपयोग करता हूँ। इस के लिए, और हमारा होने के लिए काव्यालय को धन्यवाद। चार और नाम जिनसे मुझे ज़िंदगी के हर क़दम पर कुछ मिला है : मेरे अभिन्न दिवंगत मित्र अवध किशोर, मेरी छोटी बहनें सुमन और उषा, और मेरी पत्नी शरद। इन कविताओं में और भी परछाइयाँ हैं जिनको धन्यवाद देने से उनके योगदान का अवमूल्यन हो सकता है। उन के लिए, शिव मंगल सिंह 'सुमन' के शब्दों में : “जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।”
अंत में इंद्रधनुष के उस पार की उसी प्रतिमा को “समर्पित सत्य, समर्पित स्वप्न।”
~ विनोद तिवारी
मकर संक्रांति, 2020
इंद्रधनुष के एक ओर हमारा सत्य है और दूसरी ओर स्वप्न। सत्य और स्वप्न के बीच में कोई ज्यामितीय रेखा नहीं है। इनके बीच की सरहद बादल की तरह चलायमान है जिसके धुंधलके में सत्य और स्वप्न एक दूसरे को धीरे धीरे आत्मसात करते हैं। सत्य और स्वप्न के बीच का यह धुंधलका भौतिक संसार का एक यथार्थ है। जैसे क्वांटम भौतिकी में एक इलेक्ट्रान, कण और तरंग के बीच में, अपने द्विरूप और अपने दोहरे अस्तित्व की पहचान खोजता रहता है, वैसे ही सत्य और स्वप्न, एकरूप होकर, इन कविताओं में समाये हैं।
सत्य और स्वप्न सभी के अपने मन का दर्पण हैं । सभी का अपना अनोखा सत्य और अपना व्यक्तिगत स्वप्न होता है और उनका अनुभव सबका अपना निजी। जैसे गोस्वामी तुलसीदास के शब्दों में शिव के अनुभव की अभिव्यक्ति है “सत हरिभजन, जगत सब सपना”, या ग़ालिब का बयाँ उनके अशआर में है “आते हैं ग़ैब से ये मजामे ख़याल में”, या फिर साहिर लुधियानवी का तसव्वुर, जो राज़ तो है किन्तु, उन्ही के शब्दों में, “हमारा राज़ हमारा नहीं सभी का है, चलो कि सारे ज़माने को राज़दाँ कर लें।” ये कवितायें भी सत्य और स्वप्न की सरहद पर सारे ज़माने को हमारा राज़दाँ कर लेती हैं।
यह पुस्तक काव्यालय से प्रकाशित हुई, यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। काव्यालय हिंदी जगत की एक अद्वितीय संस्था है। कितने ही जाने अनजाने कवियों को हिंदी प्रेमियों के सम्मुख, बिना किसी आर्थिक लाभ के, प्रस्तुत करने का श्रेय काव्यालय को है। काव्यालय में उपलब्ध, वाणी मुरारका द्वारा रचित, एक सॉफ्टवेयर “गीत गतिरूप”, कविताओं में मात्राओं की गणना और शब्द - संयोजन के लिए अत्यंत उपयोगी है । मैं इसका निरंतर उपयोग करता हूँ। इस के लिए, और हमारा होने के लिए काव्यालय को धन्यवाद। चार और नाम जिनसे मुझे ज़िंदगी के हर क़दम पर कुछ मिला है : मेरे अभिन्न दिवंगत मित्र अवध किशोर, मेरी छोटी बहनें सुमन और उषा, और मेरी पत्नी शरद। इन कविताओं में और भी परछाइयाँ हैं जिनको धन्यवाद देने से उनके योगदान का अवमूल्यन हो सकता है। उन के लिए, शिव मंगल सिंह 'सुमन' के शब्दों में : “जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।”
अंत में इंद्रधनुष के उस पार की उसी प्रतिमा को “समर्पित सत्य, समर्पित स्वप्न।”
~ विनोद तिवारी
मकर संक्रांति, 2020