समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न
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भाग 1 | 19
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नग़मा – गीत; नज़्म – कविता
मुक्तक

कभी लगता है ऐसी हो, कभी लगता है वैसी हो
बहारें पूंछती हैं, तुम कहाँ रहती हो, कैसी हो?
तुम ऐसा खूबसूरत राज़ हो, जो जानता हूँ मैं
मेरे नग़मों में रहती हो, तुम अपनी नज़्म जैसी हो।

*

मेरे ख़्वाबों की दास्तानों में
बेज़ुबाँ इश्क की ज़ुबानों में
तुझको पहचानना नहीं मुश्किल
रोज़ दिखती है आसमानों में।

*