समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न
भाग 1
| 10
पुरनम – भीगा हुआ; शबनम – ओस ; सियह - काली
मुक्तक
एक तस्वीर जो ख़्वाबों को सजा जाती है
कितने सोये हुए जज़बात जगा जाती है
आज भी प्यार से पुरनम वह नज़र की शबनम
सियह रातों में थपक दे के सुला जाती है।
एक तस्वीर जो ख़्वाबों को सजा जाती है
कितने सोये हुए जज़बात जगा जाती है
आज भी प्यार से पुरनम वह नज़र की शबनम
सियह रातों में थपक दे के सुला जाती है।
*
कभी पायल में छमक जाती है छम छम बन कर
कभी सावन में बरस जाती है रिम-झिम बन कर
एक तस्वीर है ख़्वाबों में खयालातों में
वही आँखों में छलक जाती है शबनम बन कर।
कभी सावन में बरस जाती है रिम-झिम बन कर
एक तस्वीर है ख़्वाबों में खयालातों में
वही आँखों में छलक जाती है शबनम बन कर।
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