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सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'
सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' की काव्यालय पर रचनाएँ
तोड़ती पत्थर
राम की शक्ति पूजा
वीणावादिनि
संध्या सुन्दरी

छायावाद के चार प्रमुख स्तंभों में से एक - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का जन्म 21 फरवरी 1899 को वर्तमान पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर जिले में हुआ था। उनके पिता मूलतः उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के निवासी थे और यहाँ सिपाही के तौर पर नौकरी करते थे। सूर्यकांत ने बंगला और हिन्दी दोनों ही भाषाओं का अध्ययन किया था। 1918 से 1922 तक मेदिनीपुर यानी तत्कालीन महिषादल में नौकरी करने के पश्चात वे कलकत्ता आ गए जहां उन्होंने 'समन्वय' और 'मतवाला' का सम्पादन किया। इसके बाद 1940 तक वे लखनऊ में कार्यरत रहे। 1942 में वे इलाहाबाद यानी वर्तमान प्रयागराज, आ गए और यहीं 15 अक्तूबर 1961 को उनका स्वर्गवास हुआ।

'जूही की कली' इनकी पहली प्रकाशित कविता है। कविता में मुक्तछंद का प्रवर्तन भी इन्होंने ही किया था। इनके 14 काव्य संग्रह, 11 उपन्यास, 5 कहानी संग्रह और 6 निबंध ग्रंथ प्रकाशित हैं। इसके अलावा इन्होंने बाल साहित्य भी लिखा और काफी अनुवाद भी किए।

राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित 'निराला रचनावली' के 8 खंडों में इनका समस्त साहित्य उपलब्ध है।


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