समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न
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भाग 2 | 51
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मुख़ातिब – किसी की ओर मुँह करके बात करना, सुनना, उसके लिए तैयार होना
23. सांस ये उम्र भर तो चलनी थी
सांस ये उम्र भर तो चलनी थी
ये शमा रात भर तो जलनी थी।

जिसके काँटों में उलझा था दामन
वह गुलाबों की एक टहनी थी।

जिसके ख़्वाबों में रात कटती है
ज़िन्दगी उसके साथ कटनी थी।

एक हसरत जो आँख से छलकी
दिल की गहराइयों में रहनी थी।

वह मुख़ातिब कभी हुए ही नहीं
एक नाज़ुक सी बात कहनी थी।

जिसको हम लोग जी नहीं पाए
वह कहानी तुम्ही से सुननी थी।

कल हक़ीक़त थी, आज अफ़साना
बात बस बात है, बदलनी थी।

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