समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न
भाग 2
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शऊर – ढंग, तरीका; माज़ी – बीता हुआ समय, अतीत
22. मुझको तनहाई की रातों में सहारा होता
मुझको तनहाई की रातों में सहारा होता
मेरे ख़्वाबों में अगर ख़्वाब तुम्हारा होता।
मेरे अफ़साने में गर मोड़ कोई आ जाता
मेरे आग़ाज़ को अंजाम गवारा होता।
ख़ुद-ब-ख़ुद ही मुझे जीने का शऊर आ जाता
मेरी दुनिया को अगर तुमने सँवारा होता।
ज़िन्दगी कटती मुसीबत में मगर कट जाती
चाहे ग़रदिश में सही, कोई सितारा होता।
भीड़ इतनी है मगर फिर भी अकेले सब हैं
कौन होता है किसी का जो हमारा होता।
अपने माज़ी से बड़ी दूर चला आया हूँ
काश पीछे से किसी ने तो पुकारा होता।
मेरे ख़्वाबों में अगर ख़्वाब तुम्हारा होता।
मेरे अफ़साने में गर मोड़ कोई आ जाता
मेरे आग़ाज़ को अंजाम गवारा होता।
ख़ुद-ब-ख़ुद ही मुझे जीने का शऊर आ जाता
मेरी दुनिया को अगर तुमने सँवारा होता।
ज़िन्दगी कटती मुसीबत में मगर कट जाती
चाहे ग़रदिश में सही, कोई सितारा होता।
भीड़ इतनी है मगर फिर भी अकेले सब हैं
कौन होता है किसी का जो हमारा होता।
अपने माज़ी से बड़ी दूर चला आया हूँ
काश पीछे से किसी ने तो पुकारा होता।
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