समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न
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भाग 3 | 68
38. प्रेम गाथा (बाल कविता)
एक था काले मुँह का बंदर।
वह बंदर था बड़ा सिकंदर।

उसकी दोस्त थी एक छछुंदर।
वह थी चांद सरीखी सुंदर।

दोनो गये बाग़ के अंदर।
उन्होंने खाया एक चुकंदर।

वहाँ खड़ा था एक मुछंदर।
वह था पूरा मस्त कलंदर।

उसने मारा ऐसा मंतर।
बाग़ बन गया एक समुंदर।

उसमें आया बड़ा बवंडर।
पानी में बह गया मुछंदर।

एक डाल पर लटका बंदर।
बंदर पर चढ़ गयी छ्छुंदर।

इतनी ज़ोर से कूदा बंदर।
वे दोनो आ गये जलंधर।

ता-तेइ करके नाचा बदंर।
कथक करने लगी छछुंदर।

ऐसे दोनो दोस्त धुरंधर।
हँसते गाते रहे निरंतर।

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