समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न
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भाग 1 | 45
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प्रणय – प्रेम; परिणीत – जिससे प्रेम किया गया हो; अभिसार – प्रेम की क्रीड़ा; तथ्य – सच्चाई; कथ्य – कथा का सार; अर्घ्य – पूजा करने के लिए जल फूल इत्यादि; यत्र – यहाँ; तत्र – वहाँ; सर्वत्र – सब जगह; अनुरक्ति – लगाव, प्रेम
20. प्रणय गीत
मैं तुम्हारे प्रणय का विश्वास हूँ।
अंत में आरम्भ का आभास हूँ।
तुम मुझे छू लो क्षितिज के छोर पर
मैं तुम्हारी सृष्टि का आकाश हूँ।

मैं तुम्हारे प्रणय का परिणीत हूँ।
गुनगुना लो, मैं तुम्हारा गीत हूँ।
इस जनम में, उस जनम में, हर जनम
एक युग से मैं तुम्हारा मीत हूँ।

मैं तुम्हारे प्रणय का अभिसार हूँ।
मैं तुम्हारा तुम्ही को उपहार हूँ।
देख लो अपने हृदय में झाँक कर
मैं तुम्ही में हूँ, तुम्हारा प्यार हूँ।

मैं तुम्हारे प्रणय की पहचान हूँ।
प्रेम को पूर्णत्व का वरदान हूँ।
तुम मुझे अनुभव करो हर रूप में
आँसुओं की धार हूँ, मुस्कान हूँ।

मैं तुम्हारे प्रणय का ही तथ्य हूँ।
एक कोमल कल्पना का कथ्य हूँ।
अंजुरी में फूल सा भर लो मुझे
मैं तुम्हारी अर्चना का अर्घ्य हूँ।

मैं तुम्हारे प्रणय का नक्षत्र हूँ।
प्रज्ज्वलित, पावन, पुनीत, पवित्र हूँ।
देख लो मुझको कहीं भी पंथ पर
यत्र हूँ, मैं तत्र हूँ, सर्वत्र हूँ।

मैं तुम्हारे प्रणय की अभिव्यक्ति हूँ।
मूक नयनों की मुखर अनुरक्ति हूँ।
सत्य तो यह है, कि मैं कुछ भी नहीं
बस तुम्हारी चेतना की शक्ति हूँ।

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