समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न
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भाग 2 | 54
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इशरत : आनन्द, सुख; क़तरा : बूँद; दरिया : नदी; फ़ना : मृत्यु, नष्ट; तारीकियों : अँधेरों;
26. बेकली महसूस हो तो
इशरते क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना।
(ग़ालिब)

*

बेकली महसूस हो तो गुनगुना कर देखिये।
दर्द जब हद से बढ़े तब मुस्कुरा कर देखिये।

रूठते हैं लोग बस मनुहार पाने के लिए
लौट आएगा, उसे फिर से बुला कर देखिये।

आपकी ही याद में शायद वह हो खोया हुआ
पास ही होगा कहीं, आवाज़ देकर देखिये।

हारती है बस मोहब्बत ही खुदी के खेल में
हार कर अपनी खुदी, उसको जिता कर देखिये।

क्या खबर किस ख़्वाब में वह चाँद बन कर आयेगा
ख़्वाबगाहों को सितारों से सजा कर देखिये।

उसके दिल में भी वही ज़ज़्बा जगेगा एक दिन
उसके ऑंसू अपनी आँखों से बहा कर देखिये।

वक़्त बदलेगा, नई तारीख लिक्खी जायेगी
आप अपने हौसलों को आज़मा कर देखिये।

आपने देखा तो है लेकिन उसे जाना नहीं
आज उसको आइने के पास जाकर देखिये।

आपकी आवाज़ से दुनिया बदल सकती तो है
दिल में जो नग़मा सुलगता है, सुना कर देखिये।

जो इमारत खोखली है, वह तो टूटेगी कभी
हो अगर हिम्मत तो नींवों को हिला कर देखिये।

रोशनी आने को एक दिन खुद-ब-खुद आ जायेगी
आज तो तारीक़ियों को ही जला कर देखिये।

दूरियाँ कितनी भी हों, उस तक पहुँचने के लिए
जो ज़रूरी है, क़दम पहला उठा कर देखिये।

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